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Pandit Ravi Shankar: शास्त्रीय संगीत के राजदूत पंडित रविशंकर

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pandit ravi shankarशास्त्रीय संगीत को भारत में उसकी पहचान के तौर पर देखा जाता है. इस पहचान को विश्वपटल रखने का जिस संगीतसाधक ने जिम्मा उठाया था उसे हम सितार के जादूगर स्वर्गीय पंडित रविशंकर के नाम से जानते हैं. आज उनकी 93वीं जयंती है.


पंडित रविशंकर का जीवन

भारत की सांस्कृतिक ख्याति को पश्चिम में व्यापक तौर पर स्वीकार्य बनाने वाले पंडित रविशंकर का जन्म 7 अप्रैल, 1920 को वाराणसी के एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ. वह अपने सात भाइयों में सबसे छोटे थे. पंडित रविशंकर बचपन से ही संगीत के माहौल में पले-बढ़े और तरह-तरह के वाद्य यंत्रों के प्रति उनकी रुचि रही. शुरुआत में पंडित रविशंकर ने नृत्य के जरिए कला जगत में प्रवेश किया जिसमें उनके भाई उदयशंकर ने काफी सहायता की. अठ्ठारह साल की उम्र में उन्होंने नृत्य छोड़कर सितार सीखना शुरू कर दिया जिसके लिए उन्होंने अपने उस्ताद अलाउद्दीन खान से दीक्षा ली.


पंडित रविशंकर का परिवार

पंडित रविशंकर का पारिवारिक और वैवाहिक जीवन विवादास्पद रहा. एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर उनके जीवन में कई बार घटित हुए वरन उनकी दोनों बेटियों के जन्म भी अलग-अलग स्त्रियों से हुए. सबसे पहले उन्होंने वर्ष 1941 में अपने गुरु अलाउद्दीन खान की पुत्री अन्नपूर्णा देवी से शादी की थी जिससे उनको एक पुत्र शुभेंद्र शंकर का जन्म हुआ. वर्ष 1992 में शुभेंद्र की मृत्यु हो गई. 1940 के दशक में ही वह अन्नपूर्णा देवी से अलग हो गए और इसी दशक के अंत में कमला शास्त्री नाम की नृत्यांगना से उनके प्रेम संबंध रहे.

अस्सी के दशक के दौरान न्यूयार्क कंसर्ट की निर्माता सू जोंस से उनका प्रेम संबंध काफी चर्चित रहा और इसी दरमियान वर्ष 1989 में उनकी बड़ी पुत्री नोराह जोंस का जन्म हुआ. नोराह जोंस अमरीका में एक प्रसिद्ध गायिका हैं. कमला शास्त्री से अलगाव होने के बाद उनके संबंध सुकन्या राजन से रहे जिनसे उन्हें वर्ष 1981 में एक और पुत्री अनुष्का शंकर पैदा हुईं. बाद में उन्होंने सुकन्या राजन से वर्ष 1989 में विवाह कर लिया. अपने पिता की तरह अनुष्का और नोराह भी ग्रेमी आवार्ड से सम्मानित हो चुकी हैं.


पंडित रविशंकर का योगदान

संगीत कला में असीम ऊंचाइयां छूने वाले पंडित रविशंकर को अगर किसी वजह से सबसे अधिक जाना जाता है तो वह है उनका भारतीय संगीत को पश्चिम में लोकप्रिय बनाने का योगदान. पंडित रविशंकर के जीवन में सबसे बड़ा पल साल 1966 का था जब उनकी मुलाकात बीटल्स समूह के सदस्य जॉर्ज हैरिसन से हुई. यह वह समय था जब युवाओं में रॉक और जैज का संगीत सर चढ़कर बोल रहा था. रविशंकर ने इन्हीं युवाओं के बीच जाकर अपने संगीक के जादू से इनका मन मोह लिया. उन्होंने जार्ज हैरिसन, जॉन काल्तरें, जिमी हेंड्रिक्स जैसे नामचीन संगीत के प्रतिनिधियों के साथ कई कार्यक्रम दिए. उन्होंने पश्चिम और पूरब की संगीत परम्पराओं के सम्मिश्रण से ‘फ्यूजन म्यूजिक’ को भी सबके सामने लाने में भी अपना योगदान दिया.

पंडित रवि शंकर की कला ही थी कि लंदन के सिंफनी ऑर्केस्ट्रा और न्यूयॉर्क के फिलहॉर्मानिक ने एंड्रेप प्रेविन तथा जुबिन मेहता जैसे अप्रतिम संगीतकारों के साथ मिलकर ऑर्केस्ट्रा की कुछ बेहद आकर्षक धुनों की रचना की जो आज भी संगीत की एक अमूल्य धरोहर के रूप में गिनी जाती हैं.


सिनेमा में रवि शंकर का योगदान

पंडित रविशंकर ने हिंदी सिनेमा के लिए भी संगीत दिया और बेहद कलात्मक ढंग से संगीत देने में वे सफल रहे. शुरुआत में उन्होंने ‘नीचा नगर’  और ‘धरती के लाल’ जैसी फिल्मों में संगीत दिया लेकिन बाद में उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी की ‘अनुराधा’, त्रिलोक जेटली निर्देशित ‘गोदान’ और गुलजार की ‘मीरा’ का भी संगीत दिया. उन्होंने सत्यजित राय की तीन फिल्मों ‘पथेर पांचाली’ (1955), ‘अपराजितो’ तथा ‘अपूर संसार’ को अपने संगीत से संवारा. रिचर्ड एटनबरो की महान फिल्म गांधी के संगीत निर्देशन के लिए उन्हें ऑस्कर के लिए भी नामित किया गया था. 1949 से 1956 तक उन्होंने आकाशवाणी में बतौर संगीत निर्देशक काम किया.


पंडित रविशंकर का निधन

भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से पुरस्कृत पंडित रवि शंकर का 11 दिसंबर, 2012 को सांस लेने में तकलीफ के चलते अमरीका के सैन डिएगो के स्क्रिप्स मेमोरियल अस्पताल में निधन हो गया. इस महान शख्सियत को आज भी लोग भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान को देखते हुए याद करते हैं.


भारत रत्न.


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