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Pranab Mukherjee Biography in Hindi: इंदिरा गांधी से करीबी तो राजीव से नाराजगी

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भारतीय राजनीति में सबसे बड़ा राष्ट्रपति को माना जाता है. आजादी के बाद भारतीय राजनीति में कुल 13 राष्ट्रपति हो चुके हैं और वर्तमान में भारत के राष्ट्रपति पद पर महामहिम प्रणब मुखर्जी जी काबिज हैं. भारतीय राष्ट्रपतियों की एक अहम विशेषता उनसे जुड़ी संघर्ष और सफलता की कहानी रही है तो चलिए इस अंक में भारत के 13वें और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी जी के बारे में जानें.

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Pranab mukherjee Profile in hindi प्रणब दा का स्वभाव

एक आदर्श नेता की तरह हमेशा गंभीर और हर बात को गंभीरता से लेते हुए उसका निष्कर्ष निकालना प्रणब दा की खूबी है. स्थिति चाहे जितनी भी गंभीर हो प्रणब दा कभी उससे विचलित नहीं होते बल्कि ऐसी स्थिति पर वह अपने कौशल का और भी बेहतरीन ढंग से इस्तेमाल करते हैं.

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प्रणब दा: कांग्रेस के सिपहसालार

एक समय था जब यूपीए सरकार के लिए मुसीबत की घड़ी में काम आने वाले ब्रह्मास्त्र का नाम प्रणब मुखर्जी हुआ करता था. यूपीए के शीर्ष नेता ही जानते हैं कि अगर प्रणब दा नहीं होते तो शायद यूपीए के लिए यह सफर कितना मुश्किल होता जो वह साल 2004 से कर रही है. और सिर्फ यूपीए के लिए ही नहीं प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस के लिए हमेशा ही एक अच्छे और समर्पित नेता की भूमिका निभाई है जिसका उपहार उन्हें राष्ट्रपति पद के रूप में मिला है. कई जानकारों का तो यह भी कहना है कि प्रणब दा प्रधानमंत्री पद चाहते थे लेकिन कांग्रेस ने उनके समर्पण और कार्यकुशलता को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति का पद ऑफर कर दिया.


pranab as presidentप्रणब दा: एक कुशल नेता

प्रणब मुखर्जी के पास चालीस साल के ज्यादा समय का राजनीतिक अनुभव है और वह इस दौरान अनेक महत्वपूर्ण पदों पर रह चुके हैं. इन पदों पर रहते हुए उनकी भूमिकाएं उससे एकदम अलग रहीं जो वह अब निभा रहे हैं. कुशल राजनेता के रूप में वह अपनी पहचान पहले ही स्थापित कर चुके हैं और अब उन्हें राष्ट्रपति के रूप में वैसी ही लोकप्रियता हासिल करनी होगी जैसी उनके कुछ पूर्ववर्तियों ने अपने कार्यकाल के दौरान हासिल की. हालांकि कई लोग वित्त मंत्री के रूप में उनके कामकाज पर अंगुलियां भी उठाते हैं, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में जो समस्याएं उभरी हैं उनके लिए वह अकेले जिम्मेदार नहीं हैं.


राष्ट्रपति के रूप में प्रणब मुखर्जी जरूर यह चाहेंगे कि वह उन उपलब्धियों को हासिल करें जो वित्त मंत्री के रूप में वह हासिल नहीं कर सके. यह समय ही बताएगा कि प्रणब मुखर्जी लोकप्रियता के मामले में डॉ. राजेंद्र प्रसाद, एस. राधाकृष्णन और ए पी जे कलाम जैसे राष्ट्रपतियों की बराबरी कर सकेंगे या नहीं, लेकिन उनमें यह क्षमता अवश्य है कि इस सर्वोच्च पद को एक नई गरिमा और ऊंचाई दे सकें.

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Pranab Mukherjee profile

एक आम आदमी से शिक्षक, वकील, प्रोफेसर, सांसद और फिर देश के वित्त मंत्री बनने तक का सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा. प्रणब मुखर्जी वर्तमान यूपीए सरकार में इससे पहले वित्त मंत्री थे. कांग्रेस के लिए प्रणव दा किसी संकटमोचक से कम नहीं रहे हैं. यूपीए सरकार की हर परेशानी में प्रणब दा ने अपनी चतुराई और राजनीतिक समझ का फायदा उठा कर यूपीए की परेशानी को हल किया है.उम्मीद है कि जिस तरह से प्रणब मुखर्जी ने कांग्रेस को हर कठिनाई से उबारा है उसी तरफ वह देश को भी सही राह ले जाएंगे.


इंदिरा गांधी के प्रिय

प्रणब मुखर्जी को इंदिरा गांधी के बेहद करीबी लोगों में से गिना जाता है. प्रणब दा इंदिरा गांधी के साथ आपातकाल (इमरजेंसी) के दौरान कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा होने वालों में से थे. आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी के कई फैसले के लिए लोग प्रणबदा को ही जिम्मेदार ठहराते हैं और इस कारण उन्हें शाह कमीशन के सामने भी पेश होना पड़ा. लेकिन इंदिरा गांधी के सत्ता में आते ही उन पर लगे सभी चार्ज हटा दिए गए.

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राजीव गांधी से मतभेद

वर्ष 1984 में राजीव गांधी सरकार के कार्यकाल के दौरान पहली बार वित्त मंत्री बने प्रणब ने पार्टी से मतभेदों के चलते अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय समाजवादी कांग्रेस बना डाली, लेकिन बाद में वर्ष 1989 में राजीव गांधी के साथ समझौता होने के बाद कांग्रेस पार्टी में वापस आ गए.


राजनीतिज्ञ मानते हैं कि इसके पीछे वजह थी कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रणब दा का खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार मानना. यह गलत भी नहीं था क्यूंकि इंदिरा गांधी खुद प्रणब दा पर बहुत भरोसा करती थीं पर उनकी हत्या के बाद उनकी यह लालसा राजीव गांधी से तल्खी की वजह बनी. लेकिन गांधी परिवार के करीबी रहे लोग भी इसे सियासी गलियारों की कोरी गप मानते हैं.

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सोनिया को राजनीति में लाने वाले प्रणब

जब सोनिया गांधी अनिच्छा के साथ राजनीति में शामिल होने के लिए राजी हुईं तब प्रणब मुखर्जी उनके प्रमुख परामर्शदाताओं में से एक थे. मुखर्जी की अमोघ निष्ठा और योग्यता ने उन्हें सोनिया गांधी के करीब ला दिया. इस वजह से जब 2004 में पार्टी सत्ता में आई तो उन्हें भारत के रक्षा मंत्री के प्रतिष्ठित पद पर पहुंचने में मदद मिली.


कई लोग मानते हैं कि पहले इंदिरा गांधी से बेहतरीन रिश्तों फिर राजीव से खट्टा-मीठा रिश्ता और बाद में सोनिया गांधी से सुनहरे रिश्ते निभाने के बाद ही आज प्रणब दा को यह मुकाम हासिल हुआ है लेकिन इस पक्ष से भी कोई मुंह नहीं मोड़ सकता है कि 40 साल राजनीति करने के बाद जहां लोग हार मान लेते हैं वहीं प्रणब दा उम्र बढ़ने के साथ अपने कार्य में भी पैनापन लाए और भारतीय राजनीति को एक राह प्रदान की. उम्मीद करते हैं जिस तरह प्रणब दा ने कांग्रेस के लिए खेवनहार की भूमिका निभाई उसी तरह वह भारत को भी नए प्रगति के मार्ग पर ले जाएंगे.


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