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पहनावे से सादे और इरादों के पक्के राजेन्द्र प्रसाद

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freedom-fighter rajendra prasadगांधीजी ने एक बार अपने भाषण में कहा था कि देश का प्रतिनिधित्व एक किसान के हाथ में होना चाहिए क्यूंकि एक किसान ही असली भारत को समझ सकता है. यह कथन उस समय बिलकुल सटीक साबित हुआ जब देश के प्रथम राष्ट्रपति के तौर पर एक ऐसे इंसान को चुना गया जिसने अपने देश को प्राथमिकता देते हुए एक असली किसान का प्रतिनिधित्व किया और यह महान पुरुष थे स्व. डा. राजेन्द्र प्रसाद.


राजेन्द्र प्रसाद का व्यक्तित्व

डा. राजेन्द्र प्रसाद का नाम आते ही दिमाग में एक साधारण से पुरुष की छवि आती है जिसने कभी आज की उभरती हुई महाशक्ति भारत का सफलता से प्रतिनिधित्व किया था. डा. राजेन्द्र प्रसाद ने अपने कार्यकाल में ऐसे कई काम किए जो आज के नेताओं के लिए एक सबक साबित हो सकते हैं. एक आदर्श नेता क्या होता है इसकी अनूठी मिसाल थे डा. राजेन्द्र प्रसाद. कहते हैं जरूरी नहीं कि जो चीज ऊपर से साधारण लग रही हो वह अंदर से भी साधारण हो. डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ भी ऐसा ही था. वह बाहर से जितने साधारण लगते थे उतने ही वह असाधारण भी थे.


डा. राजेन्द्र प्रसाद जी का जीवन

राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था. बिहार की धरती पर यूं तो और भी कई महापुरुषों का जन्म हुआ है पर राजेन्द्र प्रसाद को बिहार का गौरव माना जाता था. एक किसान परिवार से होने के कारण उन्होंने जीवन की हर कड़वी सच्चाई को नजदीक से देखा था. उनके पिता श्री महादेव सहाय संस्कृत एवं फारसी के विद्वान थे एवं उनकी माता श्रीमती कमलेश्वरी देवी एक धर्मपरायण महिला थीं जिनके संस्कारों में पलकर राजेन्द्र प्रसाद का बचपन बीता. इन्हीं संस्कारों का नतीजा था जो राजेन्द्र प्रसाद जी में सादगी और सहजता के गुणों का सृजन हुआ. सादगी, सरलता, सत्यता एवं कर्त्तव्यपरायणता आदि उनके जन्मजात गुण थे.


प्रतिभाशाली थे डा. प्रसाद

1902 में कोलकाता बोर्ड एंट्रेस परीक्षा में छपरा के राजेन्द्र बाबू को सर्वाधिक अंक एक अंग्रेज परीक्षक ने दिए थे. पुस्तिका पर उस परीक्षक ने टिप्पणी लिखी थी, ‘परीक्षार्थी, परीक्षक से अधिक जानता है’. पांच प्रश्न करने थे, सात दिए गए थे, राजेन्द्र बाबू ने सातों प्रश्न किए और टिप्पणी लिखी, ‘कोई पांच प्रश्न जांच लें’. इसके बाद की सारी परीक्षाओं में ‘राजेन बाबू’ ने सर्वाधिक अंक अर्जित किए और सर्वप्रथम रहे. शिक्षा पूर्ण करने के बाद वह मुजफ्फरपुर में शिक्षक बने. उनकी ख्याति आदर्श शिक्षक के रूप में थी. तदनंतर वह पटना हाईकोर्ट में कम फीस पर अवश्य मुकदमा जीतने वाले वकील के रूप में चर्चित थे. पूर्वी चंपारण में उन्होंने 1934-1935 में भूकंप पीड़ितों की सेवा प्राण प्रण से की. उन्होंने गांधी जी का संदेश बिहार की जनता के समक्ष इस तरह से प्रस्तुत किया कि वहां की जनता उन्हें बिहार का गांधी ही कहने लगी.


राजेन्द्र प्रसाद का नाम स्वतंत्रता संग्राम में बेहद सम्मान से लिया जाता है जिन्होंने राजनीति में होते हुए भी इससे दूरी बना जनता की सहायता में अपना अधिक समय लगया. अन्य नेताओं की तरह वह जन चेतना जगाने की बजाय जनहित के कार्यों में अधिक ध्यान देते थे. और यही वजह थी कि उन्हें सबसे अलग माना जाता था.


राजेन्द्र प्रसाद जी की एक आदत थी कि वह जल्दी सो जाते थे और जल्दी ही उठ जाते थे जिसकी वजह वह अनमोल समय की बचत बताते थे. इसी के साथ वह सादगी की ऐसी मिसाल थे जो अपने आप में अनूठी थी. देश के सर्वोच्च पद यानि राष्ट्रपति पद पर रहने के बाद भी उन्होंने कभी अपनी सादगी को नहीं छोड़ा.


देश के स्वतंत्र होने पर उन्हें प्रथम राष्ट्रपति पद पर सबने चुना और दूसरी बार भी चुने गए. राष्ट्रपति पद पर वह अत्यंत सादगी से रहते थे. उन्होंने अपने व्यय सीमित रखे थे. शेष धन प्रजा का धन, कल्याणकारी कार्यो में लगाने का उनका उपक्रम था. राष्ट्रपति पद से उन्होंने विश्राम लिया तो पटना स्थित सदाकत आश्रम में शेष दिन साधारण व्यक्ति की तरह बिताए. सन् 1962 में उनका सम्मान ‘भारत रत्न’ की सर्वोच्च उपाधि से देश ने सम्मानित किया. उनका निधन 28 फरवरी, 1963 को सदाकत आश्रम पटना में हुआ.


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