Menu
blogid : 3738 postid : 434

गरीबों के मसीहा-डा. भीम राव अंबेडकर (Proflie of Bhimrao Ramji Ambedkar)

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments


गरीबों के दर्द को वही समझ सकता है जिसने गरीबी देखी हो. जो खुद गरीबों के बीच में रहा हो वह ही गरीबों की समस्या को सही ढंग से समझ सकता है. एक इंसान किस तरह एक देश की तकदीर को संवारता है इसका उदाहरण है महापुरुष डा. भीम राव अंबेडकर. भीम राव अंबेडकर जिनका बचपन बेहद गरीबी में बीता, उन्हें छोटी जाति से संबद्ध होने की वजह से समाज की उपेक्षा का सामना करना पड़ा लेकिन मजबूत इरादों के बल पर उन्होंने देश को एक ऐसा रास्ता दिखाया जिसकी वजह से उन्हें आज भी याद किया जाता है. भीम राव अंबेडकर एक नेता, वकील, गरीबों के मसीहा और देश के बहुत बड़े नेता थे जिन्होंने समाज की बेड़ियां तोड़ कर विकास के लिए कार्य किए.


Bhimrao Ramji Ambedkarआज डा. भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) की 120वीं जयंती है. डा. भीम राव अंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्य प्रदेश के एक छोटे से गांव में हुआ था. डा. भीमराव अंबेडकर के पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का भीमाबाई था. अंबेडकर जी अपने माता-पिता की आखिरी संतान थे. भीमराव अंबेडकर का जन्म महार जाति में हुआ था जिसे लोग अछूत और बेहद निचला वर्ग मानते थे. बचपन में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के परिवार के साथ सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव किया जाता था. भीमराव अंबेडकर के बचपन का नाम रामजी सकपाल था. अंबेडकर के पूर्वज लंबे समय तक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में कार्य करते थे और उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना की मऊ छावनी में सेवा में थे. भीमराव के पिता हमेशा ही अपने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते थे.


सेना में होने के कारण भीमराव के पिता ने उनका दाखिला एक सरकारी स्कूल में करा दिया लेकिन यहां भी समाज के भेदभाव ने उनका साथ नहीं छोड़ा. अछूत और छोटी जाति की वजह से उन्हें स्कूल में सभी बच्चों से अलग बैठाया जाता था और पीने के पानी को छूने से मना किया जाता था. लेकिन फिर भी इतनी कठिन परिस्थिति में भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी. भाग्य ने हमेशा ही भीमराव अंबेडकर जी की परीक्षा ली. 1894 में भीमराव अंबेडकर जी के पिता सेवानिवृत्त हो गए और इसके दो साल बाद, अंबेडकर की मां की मृत्यु हो गई. बच्चों की देखभाल उनकी चाची ने कठिन परिस्थितियों में रहते हुये की. रामजी सकपाल के केवल तीन बेटे, बलराम, आनंदराव और भीमराव और दो बेटियाँ मंजुला और तुलासा ही इन कठिन हालातों मे जीवित बच पाए. अपने भाइयों और बहनों मे केवल अंबेडकर ही स्कूल की परीक्षा में सफल हुए और इसके बाद बड़े स्कूल में जाने में सफल हुये. अपने एक देशस्त ब्राह्मण शिक्षक महादेव अंबेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे के कहने पर अंबेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर अंबेडकर जोड़ लिया जो उनके गांव के नाम “अंबावडे” पर आधारित था.


B R ambedkarहाई स्कूल में भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) के अच्छे प्रदर्शन के बाद भी उनके साथ जातिवादी भेदभाव बेहद आम था. 1907 में भीमराव ने मैट्रिक की परीक्षा पास की और बंबई विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया और इस तरह वो भारत में कॉलेज में प्रवेश लेने वाले पहले अस्पृश्य बन गये. उनकी इस सफलता से उनके पूरे समाज मे एक खुशी की लहर दौड़ गयी. समाज के सामने भीमराव अंबेडकर जी ने एक आदर्श पेश किया था.


1908 भीमराव अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने एलिफिंस्टोन कॉलेज में प्रवेश लिया और बड़ौदा के गायकवाड़ शासक सहयाजी राव तृतीय से संयुक्त राज्य अमेरिका मे उच्च अध्धयन के लिये पच्चीस रुपये प्रति माह का वजीफा़ प्राप्त किया. 1922 में उन्होंने राजनीतिक विज्ञान और अर्थशास्त्र में अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार की नौकरी को तैयार हो गए.


बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन मे अचानक फिर से आए भेदभाव से अंबेडकर उदास हो गए, और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे.


अंबेडकर जी के जीवन में भेदभाव तो बहुत आम था लेकिन साउथबोरोह समिति के समक्ष दलितों की तरफ से अंग्रेजों के सामने उनकी पेशी ने उनके जीवन को बदलकर रख दिया. भारत सरकार अधिनियम 1919 पर चर्चा करने के लिए अंग्रेजी हुकूमत ने अंबेडकर जी को बुलाया था. 1925 में अंबेडकर जी को बॉम्बे प्रेसीडेंसी समिति में सभी यूरोपीय सदस्यों वाले साइमन आयोग में काम करने के लिए नियुक्त किया गया.


कल तक एक अछूत माने जाने वाले अंबेडकर जी कुछ ही समय में देश की एक चर्चित हस्ती बन चुके थे. उन्होंने मुख्यधारा के महत्वपूर्ण राजनीतिक दलों की जाति व्यवस्था के उन्मूलन के प्रति उनकी कथित उदासीनता की कटु आलोचना की. अंबेडकर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और उसके नेता मोहनदास गांधी (महात्मा गांधी) की आलोचना की. उन्होंने उन पर अस्पृश्य समुदाय को एक करुणा की वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाया. अंबेडकर ब्रिटिश शासन की विफलताओं से भी असंतुष्ट थे, उन्होंने अस्पृश्य समुदाय के लिये एक ऐसी अलग राजनैतिक पहचान की वकालत की जिसमें कांग्रेस और ब्रिटिश दोनों का ही कोई दखल ना हो. 8 अगस्त, 1930 को एक शोषित वर्ग के सम्मेलन के दौरान अंबेडकर ने अपनी राजनीतिक दृष्टि को दुनिया के सामने रखा, जिसके अनुसार शोषित वर्ग की सुरक्षा उसकी सरकार और कांग्रेस दोनों से स्वतंत्र होने में है.


ऐसा नहीं था कि महात्मा गांधी अछूतों से भेदभाव करते थे लेकिन गांधी का दर्शन भारत के पारंपरिक ग्रामीण जीवन के प्रति अधिक सकारात्मक लेकिन रूमानी था और उनका दृष्टिकोण अस्पृश्यों के प्रति भावनात्मक था. उन्होंने उन्हें हरिजन कह कर पुकारा. अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने इस विशेषण को सिरे से अस्वीकार कर दिया. उन्होंने अपने अनुयायियों को गांव छोड़ कर शहर जाकर बसने और शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया.


1936 में अंबेडकर (Dr.B R Ambedkar) ने स्वतंत्र लेबर पार्टी की स्थापना की, जिसने 1937 में केन्द्रीय विधान सभा चुनावों में 15 सीटें जीतीं. अंबेडकर जी एक सफल लेखक भी थे जिन्होंने समाज पर वार करती हुई कई पुस्तकें लिखीं जिनमें प्रमुख थीं “थॉट्स ऑन पाकिस्तान”, “वॉट कॉंग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स” थी.


अपने विवादास्पद विचारों, और गांधी और कांग्रेस की कटु आलोचना के बावजूद अंबेडकर की प्रतिष्ठा एक अद्वितीय विद्वान और विधिवेत्ता की थी जिसके कारण जब, 15 अगस्त, 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, कांग्रेस के नेतृत्व वाली नई सरकार अस्तित्व में आई तो उसने अंबेडकर को देश का पहले कानून मंत्री के रूप में सेवा करने के लिए आमंत्रित किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया. 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वतंत्र भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी संविधान मसौदा समिति के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया. अंबेडकर ने मसौदा तैयार करने के इस काम में अपने सहयोगियों और समकालीन प्रेक्षकों की प्रशंसा अर्जित की. इस कार्य में अंबेडकर का शुरुआती बौद्ध संघ रीतियों और अन्य बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन बहुत काम आया.


अंबेडकर द्वारा तैयार किया गए संविधान पाठ में संवैधानिक गारंटी के साथ व्यक्तिगत नागरिकों को एक व्यापक श्रेणी की नागरिक स्वतंत्रताओं की सुरक्षा प्रदान की जिनमें, धार्मिक स्वतंत्रता, अस्पृश्यता का अंत और सभी प्रकार के भेदभावों को गैर कानूनी करार दिया गया. अंबेडकर ने महिलाओं के लिए व्यापक आर्थिक और सामाजिक अधिकारों की वकालत की और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों के लिए सिविल सेवाओं, स्कूलों और कॉलेजों की नौकरियों में आरक्षण प्रणाली शुरू करने के लिए सभा का समर्थन भी हासिल किया. 26 नवंबर, 1949 को संविधान सभा ने संविधान को अपना लिया. 1951 में संसद में अपने हिन्दू कोड बिल के मसौदे को रोके जाने के बाद अंबेडकर ने मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया. इस मसौदे मे उत्तराधिकार, विवाह और अर्थव्यवस्था के कानूनों में लैंगिक समानता की मांग की गयी थी.


14 अक्टूबर, 1956 को नागपुर में अंबेडकर ने खुद और उनके समर्थकों के लिए एक औपचारिक सार्वजनिक समारोह का आयोजन किया. अंबेडकर ने एक बौद्ध भिक्षु से पारंपरिक तरीके से तीन रत्न ग्रहण और पंचशील को अपनाते हुये बौद्ध धर्म ग्रहण किया. 1948 से अंबेडकर मधुमेह से पीड़ित थे. जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से ग्रस्त थे. 6 दिसंबर 1956 को अंबेडकर जी की मृत्यु हो गई.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh