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नीली आंखें, मनमोहक मुस्कान और आकर्षक व्यक्तित्व के साथ पिछले आठ से भी अधिक दशकों तक बॉलिवुड में नाम कमाने वाले राज कपूर बॉलिवुड के प्रथम शौमैन कहे जाते हैं. शोमैन, अभिनेता, निर्माता, निर्देशक राज कपूर ने हिंदी सिनेमा जगत को कई उपलब्धियां दिलाई. राजकपूर का जादू आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है और यही वजह है कि आज भी कपूर खानदान में राज कपूर को बहुत इज्जत और सम्मान के साथ याद किया जाता है.
पृथ्वीराज कपूर के सबसे बड़े बेटे राज कपूर का जन्म 14 दिसम्बर 1924 को पेशावर में हुआ था. उनका बचपन का नाम रणबीर राज कपूर था. अपने पिता के साथ वह 1929 में मुंबई आए और उनके ही नक्शे कदम पर चलते हुए सिनेमा जगत में अपने आप को महान बनाया. 1935 में उन्होंने पहली बार फिल्म “इंकलाब ”में काम किया था, तब वह महज 11 साल के थे. उनकी पहली अभिनेता रुपी फिल्म थी “नीलकमल”. हालांकि अभिनेता होने के साथ उनके मन में एक अभिलाषा थी कि वह स्वयं निर्माता-निर्देशक बनकर अपनी स्वतंत्र फिल्म का निर्माण करें और 24 साल की उम्र में फिल्म आग (1948) का निर्देशन कर वह बॉलिवुड के सबसे युवा निर्देशक बन गए.
राज कपूर ने सन् 1948 से 1988 तक की अवधि में अनेकों सफल फिल्मों का निर्देशन किया जिनमें अधिकतम फिल्में बॉक्स आफिस पर सुपर हिट रहीं. अपने द्वारा निर्देशित अधिकतर फिल्मों में राज कपूर ने स्वयं हीरो का रोल निभाया. राज कपूर और नर्गिस की जोड़ी सफलतम फिल्मी जोड़ियों में से एक थी, उन्होंने फिल्म आह, बरसात, आवारा, श्री 420, चोरी चोरी आदि में एक साथ काम किया था. उनकी फिल्मों में मौज-मस्ती, प्रेम, हिंसा से लेकर अध्यात्म और समाजवाद तक सब कुछ मौजूद रहता था और उनकी फिल्में एवं गीत आज तक भारतीय ही नहीं तमाम विदेशी सिने प्रेमियों की पसंदीदा सूची में काफी ऊपर बनी रहती हैं.
उनकी सबसे लोकप्रिय और महत्वाकांक्षी फिल्म थी “मेरा नाम जोकर”. इस फिल्म के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की थी. हालांकि लोग “श्री 420” को उनकी सफलतम फिल्म मानते हैं. नर्गिस के साथ उनकी जोड़ी हो या नई अभिनेत्रियों को सिनेमा में लाना या लोगों के लायक फिल्में बनाना हर काम को राज कपूर ने बखूबी किया.
बतौर निर्माता-निर्देशक राजकपूर अंत तक दर्शकों की पसंद को समझने में कामयाब रहे. 1985 में प्रदर्शित राम तेरी गंगा मैली की कामयाबी से इसे समझा जा सकता है जबकि उस दौर में वीडियो के आगमन ने हिंदी सिनेमा को काफी नुकसान पहुंचाया था और बड़ी-बड़ी फिल्मों को अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल रही थी. राम तेरी गंगा मैली के बाद वह हिना पर काम कर रहे थे पर नियति को यह मंजूर नहीं था और दादा साहब फाल्के सहित विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित इस महान फिल्मकार का दो जून 1988 को निधन हो गया.
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