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Rajeev Gandhi Death: काश ! वह अभागी रात कभी न आई होती !

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rajeev gandhi deathजब कभी देश में त्याग और बलिदान की चर्चा होती है तो वहां गांधी नेहरू परिवार का अपना ही स्थान है. इसी परिवार से पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी (Rajeev Gandhi Profile in Hindi)थे जिन्होंने भारत के लिए ऐसा सपना देखा था जहां अमीर और गरीब सब समान हों. वह भारत को 21वीं सदी में विश्व में सूचना व प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्र बनाना चाहते थे लेकिन कौन जानता था कि उनके सपनों पर किसी की बुरी नजर है.


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यह वह दौर था जब विश्व में आतंकवाद अपनी अपनी जड़ें जमा रहा था. तब भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) विश्व में शांति और समृद्धि के लिए आतंकवाद को खत्म करना चाहते थे. उस समय भारत के पड़ोसी देश श्रीलंका में लिट्टे (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) हिंसा व आतंकवाद से लोगों में दहशत फैला रहा था. यह वही आतंकवादी संगठन है जिसको लेकर भारत के कई तमिल संगठनों में हमदर्दी रही है और यही बात शायद राजीव गांधी समझ नहीं पाए तथा अपने कार्यकाल के दौरान श्रीलंका में आतंकवाद के खात्मे के लिए अपनी शांति सेना भेज दी जिससे लिट्टे के अलग तमिल राष्ट्र बनाने के सपने को धक्का लगा. यहीं से रची गई पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या की खतरनाक साजिश.


21 मई, 1991 के उस दुर्भाग्यपूर्ण दिन राजीव गांधी (Rajeev Gandhi) कांग्रेस के एक लोकसभा उम्मीदवार एम. चन्द्रशेखर के पक्ष में प्रचार के लिए श्रीपेरुम्बदूर नामक शहर में गये थे. वहां रात आठ बजे उनकी सभा होनी थी. रास्ते में देर हो जाने के कारण वे लगभग 10 बजे वहां पहुंचे. उनको माला पहनाने के लिए कई लोग लाइन में लगे हुए थे, उन्हीं में ‘धनु’ नाम की वह औरत भी थी, जो अपनी कमर में बम बांधकर हत्या करने आयी थी. (सांवले रंग की पच्चीस साल की धानु भारत में गुरिल्ला युद्ध का प्रशिक्षण प्राप्त कर चुकी लिट्टे के सबसे खतरनाक आत्मघाती जत्थे की सदस्या थी) धानु माला पहनाने के बाद राजीव गांधी के पैर छूने के बहाने नीचे झुकी और अपनी कमर में लगा हुआ बटन दबा दिया, जिससे बम फट गया. इस धमाके के बाद देश का युवा नेता काल के ग्रास में समा गया. हमले में 17 और लोगों की भी जान गई.


(Rajeev Gandhi Death) मामले में एक अदालत ने 1998 में 26 लोगों को मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो केवल चार लोगों की सजा बरकरार रखी गई. 1999 में सर्वोच्च न्यायालय की तीन न्यायधीशों की पीठ ने मुरुगन, संथन, पेरारिवलन और नलिनी को मौत की सजा सुनाई. जिसके बाद दोषियों ने वर्ष 2000 में मृत्युदंड की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील करने के लिए राष्ट्रपति को दया याचिका दी थी. बाद में सोनिया गांधी की अपील पर अप्रैल 2000 में नलिनी की फांसी को आजीवन उम्रकैद में बदल दिया गया था, जबकि पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 2011 में बाकी तीन की दया याचिका खारिज कर दी थी.


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