- 1020 Posts
- 2122 Comments
देश की राजनीति में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान और स्वतंत्रता के बाद ऐसे कई नेता हुए जिन्होंने अपने दम पर शासन का रुख बदल दिया. अगर जय प्रकाश नारायण ने देश की राजनीति को स्वतंत्रता के बाद बदला तो वहीं राम मनोहर लोहिया ने देश की राजनीति में भावी बदलाव की बयार आजादी से पहले ही ला दी थी. राममनोहर लोहिया को भारत एक अजेय योद्धा और महान विचारक के तौर पर देखता है. अपनी प्रखर देशभक्ति और बेलौस तेजस्वी समाजवादी विचारों के कारण अपने समर्थकों के साथ ही डा. लोहिया ने अपने विरोधियों के मध्य भी अपार सम्मान हासिल किया.
राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को फैजाबाद में हुआ था. उनके पिताजी श्री हीरालाल पेशे से अध्यापक व हृदय से सच्चे राष्ट्रभक्त थे. उनके पिताजी गाँधीजी के अनुयायी थे. जब वे गांधीजी से मिलने जाते तो राम मनोहर को भी अपने साथ ले जाया करते थे. इसके कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ. पिताजी के साथ 1918 में अहमदाबाद कांग्रेस अधिवेशन में पहली बार शामिल हुए. बनारस से इंटरमीडिएट और कोलकता से बी ए (आर्नस) प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के पश्चात उच्च शिक्षा के लिए लंदन के स्थान पर बर्लिन का चुनाव किया. उन्होंने मात्र तीन माह में जर्मन भाषा में धारा प्रवाह पारंगत होकर अपने प्रोफेसर जोम्बार्ट को चकित कर दिया. अर्थशास्त्र में डाक्टरेट की उपाधि केवल दो वर्षो में प्राप्त कर ली. जर्मनी में चार साल व्यतीत करके, डा लोहिया स्वदेश वापस लौटे. किसी सुविधापूर्ण जीवन के स्थान पर जंग ए आजादी के लिए अपनी जिंदगी समर्पित कर दी. डा. लोहिया प्राय: कहा करते थे कि उन पर केवल ढाई आदमियों का प्रभाव रहा, एक मार्क्स का, दूसरे गॉधी का और आधा जवाहरलाल नेहरू का.
1933 में मद्रास पहुंचने पर राम मनोहर लोहिया गांधीजी के साथ मिलकर देश को आजाद कराने की लड़ाई में शामिल हो गए. डा. लोहिया ने इसमे विधिवत रूप से समाजवादी आंदोलन की भावी रूपरेखा पेश की. सन् 1935 में पं0 नेहरू ने ही अपने कॉंग्रेस अध्यक्ष कार्यकाल में लोहिया जी को कॉंग्रेस का महासचिव नियुक्त किया.
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने भारत छोडो़ आंदोलन का ऐलान किया. 1942 के आंदोलन में डा. लोहिया ने संघर्ष के नए शिखरों को छूआ. जयप्रकाश नारायण और डा. लोहिया हजारीबाग जेल से फरार हुए और भूमिगत रहकर आंदोलन का शानदार नेतृत्व किया. लेकिन अंत में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फिर 1946 में उनकी रिहाई हुई.
1946-47 के वर्ष लोहिया जी की जिंदगी के अत्यंत निर्णायक वर्ष रहे. आजादी के समय उनके और पं. जवाहर लाल नेहरु में कई मतभेद पैदा हो गए थे जिसकी वजह से दोनों के रास्ते अलग हो गए.
एक अन्य घटना के अनुसार 5 जनवरी, 1948 को बंबई हड़ताल को लेकर लोहिया जी ने गांधी जी से हड़ताल का समर्थन मांगा. 28 जनवरी को गांधी जी ने कहा कि कल आना कल पेट भर बात होगी. 30 जनवरी को लोहिया जब बिड़ला भवन के लिए निकले तब उन्हें गांधी जी की हत्या की खबर सुनने को मिली.
30 सितम्बर, 1967 को लोहिया को नई दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल, अब जिसे लोहिया अस्पताल कहा जाता है, में पौरूष ग्रंथि के आपरेशन के लिए भर्ती किया गया जहां 12 अक्टूबर 1967 को उनका देहांत 57 वर्ष की आयु में हो गया.
कश्मीर समस्या हो, गरीबी, असमानता अथवा आर्थिक मंदी, इन तमाम मुद्दों पर राम मनोहर लोहिया का चिंतन और सोच स्पष्ट थी. कई लोग राम मनोहर लोहिया को राजनीतिज्ञ, धर्मगुरु, दार्शनिक और राजनीतिक कार्यकर्ता मानते है. डा. लोहिया की विरासत और विचारधारा अत्यंत प्रखर और प्रभावशाली होने के बावजूद आज के राजनीतिक दौर में देश के जनजीवन पर अपना अपेक्षित प्रभाव कायम रखने में नाकाम साबित हुई. उनके अनुयायी उनकी तरह विचार और आचरण के अद्वैत को कदापि कायम नहीं रख सके.
Read Comments