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आर. डी. बर्मन और राजेश खन्ना की दोस्ती

Special Days
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आज संगीत की दुनिया में धुन चुराने का कार्य अधिकतर संगीतकार करते हैं लेकिन इस कार्य को आज चोरी नहीं चालाकी समझा जाता है. लेकिन जिस चीज को लोग चोरी कहते हैं दरअसल वह भी एक कला है. किसी और की चीज को अपने रंग में रंग कर उसे नए तरीके से पेश करना एक ऐसी कला है जिसमें सभी निपुण नहीं हो सकते. ऐसी ही कला के विशेषज्ञ माने जाते थे संगीत की दुनिया के जादूगर आर. डी. बर्मन यानि राहुल देव बर्मन.

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चोर नहीं थे बर्मन दा

चुरा लिया है तुमने जो दिल को, नजर नहीं चुराना सनम.. जैसे अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं का दिल चुराने वाले महान संगीतकार राहुल देव बर्मन को हिंदी फिल्म संगीत की दुनिया में सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकार के रूप में आज भी याद किया जाता है. संगीत के साथ प्रयोग करने में माहिर आरडी बर्मन पूरब और पश्चिम के संगीत का मिश्रण करके एक नई धुन तैयार करते थे. हालांकि इसके लिए उनकी काफी आलोचना भी हुआ करती थी. लेकिन इसके बावजूद उन्होंने संगीत की दुनिया में अपनी एक अहम जगह बनाई.


आर डी बर्मन और राजेश खन्ना की दोस्ती

राजेश खन्ना और आरडी बर्मन के बीच बहुत दोस्ती थी, दोनों बहुत घनिष्ठ थे. आरडी बर्मन, राजेश खन्ना और किशोर कुमार के मिलने से फिल्में सुपरहिट हो जाया करती थीं. माना जाता था कि जिस फिल्म में हीरो राजेश खन्ना हों, संगीत बर्मन दा का हो और उसमें गाने गायक किशोर कुमार ने गाए तो उस फिल्म में पैसा लगाना हमेशा फायदे का सौदा होता था.

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आर डी बर्मन और आशा भोंसले का मिलना

आर डी बर्मन की ऐसी धुनों को गाने के लिए उन्हें एक ऐसी आवाज की तलाश रहती थी जो उनके संगीत में रच बस जाए. यह आवाज उन्हें पा‌र्श्व गायिका आशा भोसले में मिली. फिल्म तीसरी मंजिल के लिए आशा भोसले ने आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा.., ओ हसीना जुल्फों वाली.. और ओ मेरे सोना रे सोना.. जैसे गीत गाए. इन गीतों के हिट होने के बाद आरडी बर्मन ने अपने संगीत से जुड़े गीतों के लिए आशा भोसले को ही चुना. लंबी अवधि तक एक-दूसरे का गीत संगीत में साथ निभाते निभाते अंतत: दोनों जीवन भर के लिए एक-दूसरे के हो लिए और अपने सुपरहिट गीतों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करते रहे. साल 1980 में आरडी बर्मन ने अपनी पहली पत्नी रीता से तलाक के बाद इनसे शादी की.


इनकी शादी भी फिल्मी थी

आर डी बर्मन की पहली शादी 1966 में रीता नाम की लड़की से हुई. इस लड़की ने अपने दोस्तों से शर्त लगाई थी कि वह बर्मन दा को एक मूवी डेट के लिए राजी कर लेगी और वह यह शर्त जीत भी गई. इस मुलाकात के बाद दोनों में प्यार हुआ और प्यार शादी में बदल गई लेकिन मात्र पांच साल में ही यह शादी टूट भी गई.

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ऐसे पड़ा पंचम नाम

कहते हैं कि जब आरडी बर्मन का जन्म हुआ था, तब अभिनेता अशोक कुमार ने देखा कि नवजात राहुल देव बर्मन बार-बार सरगम का पांचवा स्वर ‘पा’ दोहरा रहे हैं, तभी उन्होंने उनका नाम ‘पंचम’ रख दिया. आज भी अधिकतर लोग उन्हें पंचम दा के नाम से ही जानते हैं.


पहला गाना मात्र नौ साल में

महज नौ बरस की उम्र में उन्होंने अपना पहला संगीत ‘ऐ मेरी टोपी पलट के आ’ को दिया, जिसे फिल्म ‘फंटूश’ में उनके पिता ने इस्तेमाल किया. छोटी सी उम्र में पंचम दा ने ‘सर जो तेरा चकराये’ की धुन तैयार कर ली जिसे गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ में ले लिया गया. ‘प्यासा’ फिल्म का यह गाना आज भी लोग पसंद करते हैं.


विविधता थी पसंद

एक ही जैसा काम करना उनकी फितरत नहीं थी. नए प्रयोग करना, संगीत यंत्रों से नई तरह की धुनें बनाना और नई तरह की आवाजों को गानों में इस्तेमाल करना, उनका शौक था. भारतीय फिल्म जगत का करीब हर संगीतकार उनको अपना गुरु मानता है.


पंचम दा का कॅरियर

इसके बाद वे लगातार 33 सालों तक फिल्मों में सक्रिय रहे. इस दौरान पंचम दा ने ‘रात कली एक ख्वाब में आई’ [बुड्ढ़ा मिल गया], ‘पिया तू अब तो आजा’ [कारवा], ‘दम मारो दम’ [हरे रामा हरे कृष्णा] और ‘रैना बीती जाए’ [अमर प्रेम] जैसे संगीत के नायाब नगीने बॉलीवुड को दिए. आर डी वर्मन ने भारतीय सिनेमा को हर तरह का और हर दौर का संगीत दिया था. इसीलिए आज भी उनका संगीत जवान है, गाने अमर हैं.


R d Buraman Songs

बहुमुखी प्रतिभा के धनी बर्मन ने संगीत निर्देशन और गायन के अलावा भूत बंगला [1965] और प्यार का मौसम [1969] जैसी फिल्म में अपने अभिनय से भी दर्शकों को अपना दीवाना बनाया. बर्मन के संगीत से सजे कुछ सदाबहार गीत हैं ओ मेरे सोना रे सोना रे.., आजा आजा मैं हूं प्यार तेरा.. [तीसरी मंजिल-1966], मेरे सामने वाली खिड़की में.. [पड़ोसन-1968], ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए.., प्यार दीवाना होता है मस्ताना होता है.. [कटी पतंग-1970], आज उनसे पहली मुलाकात होगी [पराया धन-1971], चिंगारी कोई भड़के [अमर प्रेम-1971], पिया तू अब तो आजा.. [कारवां-1971], दम मारो दम.. [हरे रामा हरे कृष्णा-1971], आओ ना गले लगा लो ना.. [मेरे जीवन साथी], मुसाफिर हूं यारों [परिचय-1972], चुरा लिया है तूने जो दिल को.. [यादों की बारात-1973], जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं जो मुकाम.. [आप की कसम-1974], तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा.. [आंधी-1975], मेरे नैना सावन भादो.. [महबूबा-1976], बचना ए हसीनो लो मैं आ गया, ये लड़का हाय अल्लाह कैसा है दीवाना.. [हम किसी से कम नहीं-1977].

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