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फाँसी के अदालती फैसले के बाद जारी की गयी पोस्टर.. भगत सिंह के धमाके की जरूरत अभी खत्म नहीं हुई है

Special Days
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भारतीय इतिहास बेहद गौरवशाली रहा है. विवध उत्कृष्ट संस्कृतियों को अपने आँचल में समेटे ये धरती विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृति वाली धरा है. यह देश उन वीरों की कर्मभूमि है जिन्होंने अपने प्राणों की परवाह किये बगैर अपनी धरा के सगे-संबंधियों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया. अपने वतन के लिए प्राणों की बलि देने से इस धरा के सपूत कभी पीछे नहीं हटे. आजादी के बाद भी कई वीर सैनिक ने सीमाओं की हिफ़ाजत के लिए अपने प्राणों को भी दाँव पर लगा दिया.



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सज़ा मुकर्रर होने का पोस्टर 1930


लेकिन पिछले कई दशकों से हमारी पावन भूमि की संस्कृतिक विरासत और वीरता को धूमिल करने का जाने-अनजाने प्रयास किया गया. बड़े-बड़े घोटाले, स्त्री असुरक्षा, बाहुबलियों और पूंजीपतियों के समानांतर सरकार ने उन महान आत्माओं की शहादत को कलंकित करने की कोशिश की जिन्होंने देश को आजाद कराने के यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति दी थी.


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आज 23 मार्च है जिसे हम शहीद दिवस के रूप में मनाते हैं. आज ही के दिन वर्ष 1931 की मध्यरात्रि में अंग्रेजी हुकूमत ने भारत के तीन सपूतों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था. शहीद दिवस के रुप में जाना जाने वाला यह दिन यूँ तो भारतीय इतिहास के लिए काला दिन माना जाता है पर स्वतंत्रता की लड़ाई में खुद को देश की वेदी पर चढ़ाने वाले यह नायक हमारे आदर्श हैं.


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सुबह करीब 8 बजे फांसी लगायी जानी थी. लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी लगा दी गई और उनका शव रिश्तेदारों को न सौंपकर रात में ही व्यास नदी के किनारे ले जाकर जला दिये गये. अंग्रेजों ने भगतसिंह और अन्य क्रांतिकारियों की बढ़ती लोकप्रियता और 24 मार्च को होने वाले विद्रोह की वजह से 23 मार्च को ही भगतसिंह और अन्य को फाँसी दे दी.


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दरअसल यह पूरी घटना भारतीय क्रांतिकारियों के उन कृत्यों से हुई जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिला दी. 8 अप्रैल 1929 के दिन चंद्रशेखर आज़ाद के नेतृत्व में ‘पब्लिक सेफ्टी’ और ‘ट्रेड डिस्प्यूट बिल’ के विरोध में ‘सेंट्रल असेंबली’ में बम फेंका. जैसे ही बिल संबंधी घोषणा की गई तभी भगत सिंह ने बम फेंका. इसके बाद बी वो बागे नहीं. अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. भगत सिंह और बटुकेश्र्वर दत्त को आजीवन कारावास का दंड मिला.


आज भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव तो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी सोच आज भी मौजूद है जिसे हम समझने में अंशत: ही सफल हुये हैं. उनका मानना था कि सत्ता के नशे में सोयी सरकार को जगाने के लिए एक धमाके की जरुरत होती है. ऐसे ही आज भी लगता है कि समाज  को जगाने के लिए  धमाके की जरुरत है ताकि वो नींद से जाग एक साथ मिलकर इस देश को समृद्धि की राह पर ले जा पाये. उनकी सोच तो हमारे बीच है लेकिन आज भगतसिंह जैसे लोग की कमी है जो देश के लिए  अपनी जान तक हँसते-हँसते देने को तैयार हो जायें.Next….


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