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अगर 14 अगस्त की शाम को हिन्दी सिनेमा का एक सूरज अस्त नहीं होता तो यकीनन आज वह अपना जन्मदिवस मना रहा होता. शम्मी कपूर के नाम से मशहूर हिन्दी सिनेमा के इस सूरज ने हिन्दी फिल्मों को नया रुख दिया था जहां से पारंपरिक हीरो सिर्फ साफ छवि का नहीं बल्कि शरारती भी होना शुरू हुआ. आजकल जिसे हम बोलचाल की भाषा में “फ्लर्ट” करना कहते हैं पहले उसे पर्दे पर दिखाना भी बहुत मुश्किल होता था. पर जिन्हें जिंदगी में कुछ अधिक करना होता है वह हमेशा मुश्किलों को ही अपना रास्ता बनाते हैं और आगे निकलते हैं.
शम्मी कपूर हिन्दी सिनेमा में बहुत महत्व रखते थे. कपूर खानदान में जन्म लेने की वजह से फिल्मी दुनिया तो उन्हें विरासत में मिली पर उसमें सफल होने के लिए उन्होंने खुद ही मेहनत की. पृथ्वीराज कपूर के बेटे और शोमैन राज कपूर के भाई होने के नाते शम्मी के सामने अपनी अलग पहचान बनाने की चुनौती थी क्योंकि अदाकारी में कदम रखते ही उन पर उम्मीदों का बोझ पड़ गया था. शम्मी जानते थे कि उनके भाई पहले से ही सुपरस्टार और चर्चित फिल्म निर्माता हैं, इसलिए उनकी अपने भाई के साथ तुलना जरूर की जाएगी. उन्हें पता था कि अगर वह खुद को साबित करना चाहते हैं तो उन्हें अपने भाई से कुछ अलग करके दिखाना होगा.
21 अक्टूबर, 1931 को जन्मे शम्मी कपूर का असली नाम शमशेर राज कपूर था. शम्मी ने 1957 में नासिर हुसैन की फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ के जरिए पहली बार सफलता का स्वाद चखा. यह अभिनेता तत्कालीन दिग्गज हालीवुड कलाकारों एल्विस प्रेस्ले और जेम्स डीन की तरह नई वेशभूषा में दिखाई दिया. इसके बाद शम्मी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और सफलता का सीढि़यां चढते चले गए.
1959 की फिल्म “तुमसा नहीं देखा” और 1961 में आई “जंगली” ने तो शम्मी कपूर को बॉलिवुड का लवर बॉय बना दिया. जंगली फिल्म में उन पर फिल्माया गया गाना “चाहे कोई मुझे जंगली कहे..” बहुत प्रसिद्ध हुआ था. इस फिल्म में उनके द्वारा बोला गया डॉयलॉग “याहू” भी उनकी एक शैली बन गई थी.
राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद की स्थापित त्रयी को भेद कर शम्मी कपूर बेपरवाह नायक के रूप में पर्दे पर अवतरित हुए. उनका रॉकस्टार जैसा अंदाज बहुत पसंद किया गया. फिर तो एक अलग परंपरा चल निकली. नया नायक अपनी बदमाशियों के साथ प्रेमिकाओं से मर्यादित छेड़खानी करता हुआ दर्शकों को भा गया. बिंदास और बदमाश होते हुए भी शम्मी कपूर के निभाए किरदार अश्लील और अमर्यादित नहीं थे.
शम्मी कपूर जितना फैशन के दीवाने थे उतने ही वह तकनीक के करीब भी थे. उन्हें इंटरनेट सर्फिंग बहुत प्रिय था.
शम्मी कपूर ने 1955 में लोकप्रिय अभिनेत्री गीता बाली से शादी की और इसे वह अपने जीवन का महत्वपूर्ण मुकाम मानते थे. गीता बाली ने संघर्ष के दौर में उन्हें काफी प्रोत्साहन दिया. उनका वैवाहिक जीवन लंबा नहीं रहा क्योंकि गीता बाली का 1966 में निधन हो गया. बाद में शम्मी ने दूसरा विवाह नीला देवी से 1969 में किया.
1968 में उन्हें ‘ब्रह्मचारी’ के लिए श्रेष्ठ अभिनय का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला. चरित्र अभिनेता के रूप में शम्मी कपूर को 1982 में विधाता फिल्म के लिए श्रेष्ठ सहायक अभिनेता का पुरस्कार मिला. वर्ष 1995 में उन्हें लाइफटाइम एचीवमेंट अवॉर्ड प्रदान किया गया.
60 से 70 की दशक के बीच जंगली, जानवर, प्रोफेसर, कश्मीर की कली सहित दर्जनों गोल्डेन जुबली फिल्मों में यादगार भूमिका निभाने वाले सदाबहार अभिनेता शम्मी कपूर हर दिल अजीज थे. आज वह हमारे बीच तो नहीं हैं पर उनकी यादें और शैली हमेशा हमारे बीच ही रहेगी.
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