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राजेंद्र प्रसाद: विलासिता को पसंद करने वाले नेता इनसे कुछ सीखें

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देश में सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति के लिए अगर किसी को याद जाता है तो पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के अलावा स्वतंत्रता सेनानी और देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद नाम आता है. आज जहां देश के नेता विलासिता के जीवन को पूरी तरह से अपना चुके हैं वहीं राजेंद्र प्रसाद की सादगी पर आज भी मिसाले दी जाती है.


rajendra prasadऐसी थी राजेंद्र प्रसाद की सादगी

घटना 1935 की है. उन दिनों डॉ. राजेंद्र प्रसाद लीडर प्रेस में समाचार देने के लिए इलाहाबाद आए थे. वह कार्यालय पहुंचकर एक पत्रक  चपरासी के माध्यम से संपादक के पास भिजवाया. चपरासी पत्रक को संपादक की मेज पर रखकर बाहर चला आया.  इस बीच हल्की-हल्की बूंदाबांदी शुरू हो गई. वर्षा से राजेंद्र प्रसाद के कपड़े कुछ भीग गए थे. कार्यालय के बाहर तीन-चार आदमी अंगीठी पर हाथ सेंक रहे थे. राजेंद्र प्रसाद उन लोगों के पास जाकर बैठ गए. उधर संपादक की नजर जब पत्रक पर पड़ी, तो उन्होंने घंटी बजाकर चपरासी को बुलाया और पूछा कि पत्रक किसने दिया था. चपरासी बोला- वह आदमी बाहर खड़ा है. संपादक भागकर बाहर आए. इधर-उधर देखने के बाद उन्होंने देखा कि राजेंद्र बाबू अंगीठी के पास बैठे हैं. संपादक उन से देरी के लिए माफी मांगने लगे. तब राजेंद्र प्रसाद ने कहा माफी किस लिए? तुम अपने काम में व्यस्त थे और मैंने तब तक अपना काम पूरा कर लिया. राजेंद्र प्रसाद की ऐसी थी सादगी.


यह ढोंग कब तक काम आयेगा?


राजेंद्र प्रसाद का व्यक्तित्व

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म उस काल में हुआ जब ब्रिटिश साम्राज्यवाद पूरी तरह अपने पांव पसार चुका था. खाने-पीने, कपड़े पहनने से लेकर लगभग हर क्षेत्र में ब्रिटिश छाप महसूस की जा सकती थी. लेकिन राजेंद्र प्रसाद परंपरा के अनुसार हमेशा धोती-कुर्ता और सर पर टोपी पहनते थे. वह एक विद्वान और प्रतिभाशाली पुरुष थे. संयुक्त परिवार में सबसे छोटे होने के कारण राजेंद्र प्रसाद का बचपन बहुत दुलार से बीता था. वह एक दृढ़ निश्चयी और उदार दृष्टिकोण वाले व्यक्ति थे. कायस्थ परिवार से संबंधित होने के कारण राजेंद्र प्रसाद थोड़े रूढिवादी विचारधारा वाले थे. उन्होंने स्वयं स्वीकार किया था कि वह ब्राह्मण के अलावा किसी और का छुआ भोजन तक नहीं खाते थे. उन्होंने अपना यह व्यवहार गांधी जी के संपर्क में आने के बाद छोड़ा था.


राजेंद्र प्रसाद का जीवन

26 जनवरी, 1950 को जब भारत को संविधान के रूप में एक गणतंत्र राष्ट्र का दर्जा दिया गया उसी दिन डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के रूप में स्वतंत्र भारत को पहला राष्ट्रपति भी प्राप्त हुआ. राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर, 1884 को बिहार के एक छोटे से गांव जीरादेई में हुआ था. यह वो समय था जब धर्म के नाम पर भेदभाव जैसी व्यवस्थाएं समाज से पूरी तरह विलुप्त थीं. राजेंद्र जी के भी कई सारे मित्र मुसलमान थे जो उनके साथ मिलकर होली खेलते थे और हिन्दू मुहर्रम वाले दिन ताजिए निकालते थे. एक बड़े संयुक्त परिवार के सबसे छोटे सदस्य होने के कारण इनका बचपन बहुत प्यार और दुलार से बीता. संयुक्त परिवार होने के कारण पारिवारिक सदस्यों के आपसी संबंध बेहद मधुर और गहरे थे. इनके पिता का नाम महादेव सहाय था. डॉ राजेंद्र प्रसाद की प्रारंभिक शिक्षा उन्हीं के गांव जीरादेई में हुई. उस समय यह रिवाज था कि शिक्षा का आरंभ फारसी भाषा से ही किया जाएगा. इसीलिए राजेंद्र प्रसाद और उनके चचेरे भाइयों को पढ़ाने एक मौलवी आते थे. पढ़ाई की तरफ इनका रुझान बचपन से ही था. बाल-विवाह की परंपरा का अनुसरण करते हुए मात्र 12 वर्ष की आयु में इनका विवाह राजवंशी देवी से संपन्न हुआ. राजेंद्र प्रसाद ने अपने लगातार खराब रहने वाले स्वास्थ्य क असर अपनी पढ़ाई पर नहीं पड़ने दिया. आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने कलकत्ता विश्विद्यालय की प्रवेश परीक्षा में पहला स्थान प्राप्त किया. उन्हें 30 रूपए महीने की छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई. जीरादेई गांव से पहली बार किसी युवक ने कलकत्ता विश्विद्यालय में प्रवेश पाने में सफलता प्राप्त की थी जो निश्चित ही राजेंद्र प्रसाद और उनके परिवार के लिए गर्व की बात थी. सन 1902 में उन्होंने कलकत्ता प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया. सन 1915 में कानून में मास्टर की डिग्री में विशिष्टता पाने के लिए राजेन्द्र प्रसाद को सोने का मेडल मिला. इसके बाद उन्होंने कानून में डॉक्टरेट की उपाधि भी प्राप्त की.

डॉ. राजेंद्र प्रसाद सादगी पसंद, अत्यंत दयालु और ईमानदार स्वभाव के महान व्यक्ति थे. सादा जीवन, उच्च विचार के अपने सिद्धांत का निर्वाह उन्होंने जीवन र्पयत किया. देश और दुनिया उन्हें एक विनम्र राष्ट्रपति के रूप में उन्हें हमेशा याद करती है.


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