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आज जो हम कुरीतियुक्त और परंपरावादी समाज का बदला हुआ स्वरूप देख रहे हैं उसमें भारत के कई महापुरुषों ने योगदान दिया है. उन्होंने अपने अनुभव, ज्ञान और विवेक से संपूर्ण विश्व का मार्गदर्शन किया है. ऐसे ही महापुरुष हैं – समाज सुधारक और आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती. छोटी सी आयु में घर-परिवार को त्यागने वाले संन्यासी स्वामी दयानंद सरस्वती ने अपने जीवन में जितने भी आंदोलन किए उसका मुख्य ध्येय भारतवर्ष में सामाजिक तथा धार्मिक कार्यों में सुधार लाना था. जिस समय उनका जन्म हुआ उस समय भारत में सर्वत्र अज्ञानता, जड़ता, ढोंग, पाखंड, अंधविश्वास, छुआछूत आदि जैसी कुरीतियां व्याप्त थीं.
धार्मिक गुणों से परिपूर्ण दयानंद सरस्वती हिंदू धर्म में व्याप्त घोर अंधविश्वास व कुरीतियों का विरोध करते थे तथा उसे दूर करने के लिए सतत प्रयास भी किया. उन्होंने मूर्ति-पूजा, अवतारवाद, बहुदेव, पूजा, पशुता का व्यवहार व विचार और अंधविश्वासी धार्मिक काव्य की आलोचना की और एकेश्वरवाद का प्रचार किया. दयानंद सरस्वती भारत को वेदों में देखते थे इसलिए वह लोगों को वेदों के अध्ययन-मनन की ओर लौटने की प्रेरणा भी देते थे. उन्होंने वेदों के जरिए ही लोगों को बताया कि छुआछूत की भावना या व्यवहार एक अपराध है जो समाज को दीमक की तरह खा जाएगा.
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वेदों को साधारणजन से जोड़ कर ही महर्षि दयानंद ने अप्रैल 1875 में आर्यसमाज की स्थापना की, जिसके सदस्यों की स्वतंत्रता संग्राम में विशेष भूमिका रही. स्वामी दयानंद ने आर्य समाज के नियमों के रूप में संसार को 10 सूत्र दिए हैं. यदि उनका पालन किया जाए, तो भू-मंडल पर सर्वत्र सुख-संतोष और शांति का साम्राज्य स्थापित हो सकता है. दस नियमों में शारीरिक, आत्मिक, विश्व बंधुत्व और मानवता सूत्र हैं.
स्वामी दयानंद के कुछ प्रमुख कार्य
पाखंडों व कुरीतियों के विरुद्ध शांतिपूर्ण क्रांति.
वेदों की विशेषताओं का प्रचार-प्रसार.
छुआछूत, बाल विवाह, अंधविश्वास और धर्म में फैले पाखंडों का विरोध.
स्त्री-शिक्षा, विधवा विवाह को प्रोत्साहन.
सत्य पथ पर चलते हुए देश-सेवा करने का आह्वान.
हिंदी भाषा पर जोर.
चरित्र निर्माण पर बल
हिन्दू समाज की कुरीतियों, अंधविश्वास एवं सड़ी-गली मान्यताओं का पूरी शक्ति के साथ खण्डन करने वाले दयानंद सरस्वती ने 30 अक्टूबर, 1883 को अपना शरीर त्याग दिया. दयानंद सरस्वती को भारत के उन महान समाज सेवकों के रूप में हमेशा याद किया जाएगा जिन्होंने इस समाज की धारा को बदलने में विशेष योगदान दिया. कहते हैं एक अकेला क्या भाड़ फोड़ पाएगा लेकिन उन्होंने अकेले ही वर्षों पुरानी कुरीतियों को बदलकर समाज को नया रूप दिया.
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