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स्वतंत्रता दिवस: आजादी के उन दीवानों को करें याद

Special Days
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जब-जब आजादी का पर्व आता है तब-तब पूरा देश देशभक्ति के गीतों
से सराबोर हो जाता है. हर तरफ उन वीरों को याद किया जाता है
जिन्होंने अपनी फौलादी शक्ति का प्रदर्शन करके फिरंगियों को नाको चने
चबाने पर मजबूर कर दिया. आइए उन्हीं वीरों को याद करते हैं:

जब-जब आजादी का पर्व आता है तब-तब पूरा देश देशभक्ति के गीतों से सराबोर हो जाता है. हर तरफ उन वीरों को याद किया जाता है. जिन्होंने अपनी फौलादी शक्ति का प्रदर्शन करके फिरंगियों को नाको चने चबाने पर मजबूर कर दिया. आइए उन्हीं वीरों को याद करते हैं:


मंगल पांडे: देश के प्रथम स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में वर्ष 1857 की क्रांति का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है. अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़े गए इस आंदोलन में भारत के योद्धाओं ने अपना अहम योगदान दिया.  इन योद्धाओं में मंगल पांडे का नाम अग्रणी रूप में लिया जाता है. मंगल पांडे वह पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद किया. यह मंगल पांडे के प्रयास का ही नतीजा था जिसकी बदौलत 90 साल बाद 1947 मेंभारत को आजादी नसीब हुई.


रानी लक्ष्मीबाई: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम वीरता और शौर्य की बेमिसाल निशानी रानी लक्ष्मीबाई के वर्णन के बगैर अधूरा माना जाता है. लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह ध्रुव तारा हैं जिसकी रोशनी कभी कम नहीं हो सकती. देश के पहले स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली रानी लक्ष्मीबाई का अप्रतिम शौर्य किसी से छुपा नहीं है. झांसी ने अपनी मुट्ठी भर सेना की सहायता से अंग्रेजों के नाम में दम कर दिया था. उन्होंने कम उम्र में ही साबित कर दिया कि वह न सिर्फ बेहतरीन सेनापति हैं बल्कि कुशल प्रशासक भी हैं. वह महिलाओं को अधिकार संपन्न बनाने की भी पक्षधर थीं. उन्होंनेअपनी सेना में महिलाओं की भर्ती की थी.


भगत सिंह:  युवाओं को अगर सही नेतृत्व मिले तो वह देश की अनमोल धरोहर साबित होते हैं. क्रांतिकारी भगत सिंह भी एक ऐसे ही अनमोल रत्न थे. उन्होंने भारतीय युवाओं की उपयोगिता और उनके जुनून को सबके सामने रखा. शहीद भगत सिंह ने ही देश के नौजवानों में ऊर्जा का ऐसा गुबार भरा कि विदेशी हुकूमत को इनसे डर लगने लगा. हाथ जोड़कर निवेदन करने की जगह लोहे से लोहा लेने की आग के साथ आजादी की लड़ाई में कूदने वाले भगत सिंह की दिलेरी की कहानियां आज भी हमारे अंदर देशभक्ति की आग जलाती हैं.


चन्द्रशेखर आजाद:   नाम आजाद, पिता का नाम स्वाधीनता, घर जेल – यह परिचय उस चिंगारी का था जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की आग में सबसे ज्यादा घी डाला. चन्द्रशेखर आजाद ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों की ऐसी फौज खड़ी की जिससे अंग्रेजों की नींद उड़ गई. अंग्रेजों में चन्द्रशेखर का ऐसा खौफ था कि उनकी मौत के बाद भी कोई उनके करीब जाने से डरता था. वीरता, साहस और दृढ़निश्चयता की ऐसी मिसाल दुनिया में बहुत कम देखने को मिलती है.


नेताजी सुभाष चन्द्र बोस: अगर आप सोचते हैं कि कहानियों में आने वाले साहसी कारनामे करने वाले नायक सिर्फ कल्पनाओं में होते हैं तो शायद आप गलत हैं. सुभाष चन्द बोस वह शख्स हैं जिन्होंने अपने कारनामों से ना सिर्फ अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे बल्कि उन्होंने देश को आजाद कराने के लिए अपनी एक अलग फौज भी खड़ी की थी. देश से तो उन्हें निकाल दिया गया लेकिन माटी की स्वतंत्रता के लिए उन्होंने विदेश में जाकर ऐसी सेना चुनी जिसने अंग्रेजों को दिन में ही तारे दिखाने का हौसला दिखाया.


लाला लाजपत राय: ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक चोट ब्रिटिश साम्राज्य के ताबूत की कील बनेगी’ यह कथन थे शेर-ए-पंजाब के नाम से मशहूर लाला लाजपत राय के जिन्होंने अपने नेतृत्व से अंग्रेजी शासन के गढ़ों में हमला किया था. लाला जी पंजाब केसरी कहे जाते थे और पूरे पंजाब के प्रतिनिधि थे. उन्होंने साइमन कमीशन केआगमन का कड़ा विरोध किया. वह घायल होने के बावजूद भी सक्रिय रूप से अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते रहे. आखिरी समय में उनके द्वारा कहा गया एक-एक शब्द चरितार्थ हुआ.


वीर विनायक दामोदर सावरकर:  क्रांतिकारी होने का यह मतलब नहीं होता कि इंसान हमेशा गुस्से में दिखे और मरने-मारने पर आतुर रहे. जो क्रांतिकारी स्वभाव से जितने शांत होते हैं वह उतने ही घातक होते हैं. कुछ ऐसी ही शख्सियत के थे वीर विनायक दामोदर सावरकर. विनायक दामोदर सावरकर भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के सेनानी और प्रखर राष्ट्रवादी नेता थे. सावरकर की क्रांतिकारी गतिविधियाँ भारत और ब्रिटेन में अध्ययन के दौरान शुरू हुईं. वे इंडिया हाउस से जुड़े थे. उन्होंने अभिनव भारत सोसायटी समेत अनेक छात्र संगठनोंकी स्थापना की थी.


क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा: यह नाम शायद आपने बहुत कम सुना होगा. लेकिन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कुछ भूले हुए क्रांतिकारियों में ढींगरा का नाम उल्लेखनीय है. मदन लाल ढींगरा को अंग्रेज अफसर कर्ज़न वाईली की हत्या के आरोप में फांसी पर लटका दिया गया था. इस देशभक्त को दफन होने के लिए देश की धरती भी नसीब नहीं हुई थी पर देश आज भी इस युवा क्रांतिकारी को याद करता है.


सुखदेव: दिल में आस हो और हौसलों में उड़ान हो तो कोई मंजिल दूर नहीं होती. कुछ ऐसा ही हौसला था युवा सुखदेव में जिन्होंने देशभक्ति की राह पर चलते हुए फांसी के झूले पर हंसते हंसते खुद को कुर्बान कर दिया. बचपन से ही सुखदेव ने भारतीय लोगों पर अत्याचार होते देखा था. यही कारण है कि किशोरावस्था में पहुंचते ही वह अंग्रेजों को भारत से बाहर करने के लिए चलाई जा रही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेने लगे. मात्र 24 वर्ष की आयु में देश के लिए अपने प्राण त्यागने वाले सुखदेव को अपने साहस, कर्तव्य-परायणता और देशभक्ति के लिए हमेशा याद किया जाएगा.


गणेश शंकर विद्यार्थी: काव्य साहित्य का वह अंश है जिसका असर बहुत ज्यादा होता है. इतिहास गवाह है कि हर क्रांति में कवियों का अहम स्थान रहा है. भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी गणेश शंकर विद्यार्थी का नाम एक ऐसे कवि के रूप में लिया जाता है जिनकी कविताओं ने युवाओं में क्रांति जगाने का काम किया. उनके द्वारा लिखित और प्रकाशित समाचार पत्र ‘प्रताप‘ ने स्वाधीनता आन्दोलन में प्रमुख भूमिका निभाई. प्रताप के जरिये ही ना जाने कितने क्रांतिकारी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित हुए. इतना ही नहीं यह समाचार पत्र समय-समय पर साहसी क्रांतिकारियों की ढाल भी बना.


अशफ़ाक उल्ला खान: अंग्रेजी शासन से देश को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले अशफ़ाक उल्ला खां ना सिर्फ एक निर्भय और प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थे बल्कि उर्दू भाषा के एक बेहतरीन कवि भी थे. इनको काकोरी कांड के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है.


बिपिन चंद्र पाल: भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रतिष्ठित नेता और बंगाल पुनर्जागरण के मुख्य वास्तुकार थे बिपिन चंद्र पाल. इसके अलावा वह एक राष्ट्रभक्त होने के साथ-साथ एक उत्कृष्ट वक्ता, लेखक और आलोचक भी थे.


हालांकि इतिहास के पन्नों में आजादी के कुछ ऐसे गुमनाम दीवाने भी हैं जिनके साथ भारतीय इतिहासकारों ने पूरा न्याय नहीं किया. आज जरूरत है उन्हें भी याद करने की.


भारत के 67वें स्वतंत्रता दिवस पर आप सभी पाठकों को हार्दिक बधाइयां

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