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हिन्दी सिनेमा में आज तड़कते-भड़कते गानों का प्रचलन ज्यादा है लेकिन इन सबके बीच लयबद्ध गीतों का अपना एक अलग ही महत्व है. आज के गीतकारों को जहां शब्दों को खोजने में बहुत दिक्कत होती है वहीं कुछ ऐसे गीतकार भी हैं जिनके पूरे गाने बेमिसाल शब्दों से भरे होते हैं और जिसमें लय और संगीत की अजब महक होती है. ऐसे ही एक शब्द शिल्पी हैं जावेद अख्तर. आज हिन्दी सिनेमा इंडस्ट्री में यूं तो जावेद अख्तर किसी परिचय के मोहताज नहीं लेकिन बहुत कम लोग होंगे जो जावेद साहब के जीवन की बारीकियों को जानते होंगे. तो आइए जानते हैं जावेद अख्तर के बारे में कुछ विशेष बातें.
जावेद अख्तर का बचपन
इनका जन्म 17 जनवरी, 1945 को ग्वालियर में हुआ था. पिता जान निसार अख्तर प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि और माता सफिया अख्तर मशहूर उर्दू लेखिका तथा शिक्षिका थीं. इनके बचपन का नाम जादू जावेद अख्तर था. बचपन से ही शायरी से जावेद अख्तर का गहरा रिश्ता था. उनके घर शेरो-शायरी की महफिलें सजा करती थीं जिन्हें वह बड़े चाव से सुना करते थे. जावेद अख्तर ने जिंदगी के उतार-चढ़ाव को बहुत करीब से देखा था, इसलिए उनकी शायरी में जिंदगी के फसाने को बड़ी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है.
समय उतार-चढ़ाव का
जावेद अख्तर के जन्म के कुछ समय के बाद उनका परिवार लखनऊ आ गया. जावेद अख्तर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ से पूरी की. कुछ समय तक लखनऊ रहने के बाद जावेद अख्तर अलीगढ़ आ गए, जहां वह अपनी खाला के साथ रहने लगे. वर्ष 1952 में जावेद अख्तर को गहरा सदमा पहुंचा जब उनकी मां का इंतकाल हो गया. जावेद अख्तर ने अपनी मैट्रिक की पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की. इसके बाद उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा भोपाल के “साफिया कॉलेज” से पूरी की, लेकिन कुछ दिनों के बाद उनका मन वहां नहीं लगा और वह अपने सपनों को नया रूप देने के लिए वर्ष 1964 में मुंबई आ गए. मुंबई पहुंचने पर जावेद अख्तर को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. मुंबई में कुछ दिनों तक वह महज 100 रुपये के वेतन पर फिल्मों मे डॉयलाग लिखने का काम करने लगे. इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के लिए डॉयलाग लिखे, लेकिन इनमें से कोई फिल्म बॉक्स आफिस पर सफल नहीं हुई. इसके बाद जावेद अख्तर को अपना फिल्मी कॅरियर डूबता नजर आया, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपना संघर्ष जारी रखा. धीरे-धीरे मुंबई में उनकी पहचान बनती गई.
ऐसे बनी सलीम-जावेद की हिट जोड़ी
मुंबई में उनकी मुलाकात सलीम खान से हुई, जो फिल्म इंडस्ट्री में बतौर संवाद लेखक अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे. इसके बाद जावेद अख्तर और सलीम खान संयुक्त रूप से काम करने लगे.
जावेद अख्तर का कॅरियर
वर्ष 1970 में प्रदर्शित फिल्म “अंदाज” की कामयाबी के बाद जावेद अख्तर कुछ हद तक बतौर डॉयलाग राइटर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए. फिल्म “अंदाज” की सफलता के बाद जावेद अख्तर और सलीम खान को कई अच्छी फिल्मों के प्रस्ताव मिलने शुरू हो गए. इन फिल्मों में “हाथी मेरे साथी”, “सीता और गीता”, “जंजीर” और “यादों की बारात” जैसी फिल्में शामिल हैं.
फिल्म “सीता और गीता” के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात हनी ईरानी से हुई और जल्द ही जावेद अख्तर ने हनी ईरानी से निकाह कर लिया. हनी इरानी से उनके दो बच्चे हुए फरहान अख्तर और जोया अख्तर. लेकिन हनी इरानी से उन्होंने तलाक लेकर साल 1984 में शबाना आजमी से शादी कर ली.
जंजीर ने बदली किस्मत
वर्ष 1973 में उनकी मुलाकात निर्माता-निर्देशक प्रकाश मेहरा से हुई जिनके लिए उन्होंने फिल्म “जंजीर” के लिए संवाद लिखे. फिल्म जंजीर में उनके द्वारा लिखे गए संवाद दर्शकों के बीच इस कदर लोकप्रिय हुए कि पूरे देश में उनकी धूम मच गई. इसके साथ ही फिल्म के जरिए फिल्म इंडस्ट्री को अमिताभ बच्चन के रूप में सुपर स्टार मिला. इसके बाद जावेद अख्तर ने सफलता की नई बुलंदियों को छुआ और एक से बढ़कर एक फिल्मों के लिए संवाद लिखे. जाने माने निर्माता-निर्देशक रमेश सिप्पी की फिल्मों के लिए जावेद अख्तर ने जबरदस्त संवाद लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके संवाद के कारण ही रमेश सिप्पी की ज्यादातार फिल्में आज भी याद की जाती हैं. इन फिल्मों में खासकर “सीता और गीता”( 1972), “शोले” (1975), “शान” (1980), “शक्ति” (1982) और “सागर” (1985) जैसी सफल फिल्में शामिल हैं. रमेश सिप्पी के अलावा उनके पसंदीदा निर्माता-निर्देशकों में यश चोपड़ा, प्रकाश मेहरा प्रमुख रहे हैं. वर्ष 1980 में सलीम-जावेद की सुपरहिट जोड़ी अलग हो गई. इसके बाद भी जावेद अख्तर ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का काम जारी रखा.
जावेद अख्तर को मिले पुरस्कार
सर्वश्रेष्ठ गीतकार का फिल्मफेयर पुरस्कार
जावेद अख्तर को सबसे पहले वर्ष 1994 में प्रदर्शित फिल्म “1942 ए लव स्टोरी” के गीत एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा.. के लिए सर्वश्रेष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
इसके बाद जावेद अख्तर वर्ष 1996 में प्रदर्शित फिल्म पापा कहते हैं के गीत घर से निकलते ही..(1997), बार्डर के गीत संदेशे आते हैं…2000), रिफ्यूजी के गीत पंछी नदिया पवन के झोंके.. (2001), लगान के सुन मितवा.. (2003), कल हो ना हो (2004), वीर जारा के तेरे लिए…के लिए भी जावेद अख्तर सर्वश्रेष्ठ गीतकार के पुरस्कार से सम्मानित किए गए.
पद्मश्री और पद्मभूषण
वर्ष 1999 में साहित्य जगत मे जावेद अख्तर के बहुमूल्य योगदान को देखते हुए उन्हें राष्ट्रपति द्वारा पद्म श्री से नवाजा गया. वर्ष 2007 में उन्हें पद्म भूषण सम्मान से नवाजा गया.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार
जावेद अख्तर को उनके गीत के लिए वर्ष 1996 में फिल्म साज, 1997 में बार्डर, 1998 में गॉड मदर, 2000 में फिल्म रिफ्यूजी और साल 2001 में फिल्म लगान के लिए नेशनल अवार्ड से भी सम्मानित किया गया.
लगभग तीन दशक से अपने गीतों से संगीत जगत को सराबोर करने वाले महान शायर और गीतकार जावेद अख्तर की रूमानी नज्में आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं जिन्हें सुनकर श्रोताओं के दिल से बस एक ही आवाज निकलती है जब छाए तेरा जादू कोई बच ना पाए.
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