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भारत को पर्वों का देश कहा जाता है. यहां हर महीने कोई ना कोई पर्व हमें खुशियां बांटने का मौका देता है. साल की शुरूआत भी कई त्यौहारों से होती है जिसमें से लोहड़ी एक है. पंजाबी समुदाय का यह विशेष पर्व खुशियों और जश्न की अनोखी परिभाषा गढ़ता है. पंजाबी वैसे भी अपने खुशनुमा व्यवहार और जीवन को पर्व की तरह जीने के लिए मशहूर हैं. वह तो सामान्य दिन को भी एक पर्व की तरह जीते हैं फिर जब बात उनके सबसे बड़े पर्व की हो तो वह इसे पूरे दिल से मनाते हैं. यह त्यौहार एकता और खुशहाली का संदेश देता है.
प्रेम व सौहार्द का संदेश देने वाला यह त्यौहार पंजाबी लोगों की जिंदादिली का आइना है. पौष की अंतिम रात को माघ के आगमन की खुशी में लोहड़ी मनाई जाती है. इसके अगले दिन माघ महीने की संक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है. वैसाखी की तरह ही लोहड़ी का सबंध भी पंजाब में फसल और मौसम से है. पौष की कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए भाईचारे की सांझ और अग्नि का सुकून लेने के लिए यह त्यौहार मनाया जाता है.
कैसे बनी लोहड़ी: लोहड़ी शब्द तिल तथा रोड़ी शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर तिलोड़ी और बाद में लोहड़ी हो गया. पंजाब के कई इलाकों में इसे लोही या लोई भी कहा जाता है.
लोकपर्व का रंग: लोहड़ी के दिन गांव के लडके-लडकियां अपनी-अपनी टोलियां बनाकर घर-घर जाकर लोहड़ी के गाने गाते हुए लोहड़ी मांगते हैं. सुंदर, मुंदरिये हो.. के अलावा दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोडी, दे माई पाथी, तेरा पुत्त चढेगा हाथी आदि प्रमुख हैं. लोग उन्हें लोहड़ी के रूप में गुड, रेवडी, मूंगफली, तिल या फिर पैसे भी देते हैं. ये टोलियां रात को आग जलाने के लिए घरों से लकडियां, उपले आदि भी इकठ्ठा करती हैं और रात को गांव के लोग अपने मुहल्ले में आग जलाकर गीत गाते, भंगडा-गिद्धा करते, गुड, मूंगफली, रेवडी खाते हुए लोहड़ी मनाते हैं. आग में तिल डालते हुए लोग अच्छे स्वास्थ्य व समृद्धि की कामना करते हैं.
लोहड़ी की रात गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है और उसे अगले दिन माघी के दिन खाया जाता है, जिसके लिए पोह रिद्धी माघ खादी जैसी कहावत जुडी हुई है. इसके अलावा माघ संक्रांति को उड़द की दाल की खिचड़ी भी खाई जाती और उसे दान में भी दिया जाता है. लोग सरोवरों में स्नान करके सूर्य अराधना करते हैं. पवित्र अग्नि का यह त्यौहार मानवता को सीधा रास्ता दिखाने और रूठे हुए लोगों को मनाने का जरिया बनता रहेगा.
लोहड़ी को लेकर युवाओं में कुछ अधिक ही उत्साह रहता है. यह त्यौहार नवविवाहितों और छोटे बच्चों के लिए भी विशेष महत्व रखता है. लोहड़ी की संध्या में जलती लकड़ियों के सामने नवविवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय व शान्तिपूर्ण बनाये रखने की कामना करते हैं. साथ ही पहले बच्चे के लिए भी यह त्यौहार बहुत अहम होता है.
गुम होते लोकगीत
लोहड़ी के पर्व की दस्तक के साथ ही पहले सुंदर मुंदरिये हो तेरा कौन विचारा, दुल्ला भट्टी वाला, दे माई लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी आदि लोकगीत गाकर घर-घर लोहड़ी मांगने का रिवाज था, परंतु समय के साथ-साथ यह रिवाज लुप्त होता जा रहा है. हालांकि इस समय भी लोग लोहड़ी पर्व मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं, परंतु नई युवा पीढ़ी अपनी प्रथा से वंचित होती जा रही है. अब गलियों-बाजारों में लोहड़ी नहीं मांगी जाती. इसका स्वरूप अब डीजे की धुनों ने ले लिया है.
लोहड़ी का निम्नलिखित गीत काफी मशहूर है जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है:
सुंदर, मुंदरिये हो,
तेरा कौन विचारा हो,
दुल्ला भट्टी वाला हो,
दुल्ले धी (लड़की) व्याही हो,
सेर शक्कर पाई हो.
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