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भक्ति आन्दोलन मध्यकालीन भारत के सांस्कृतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. इस दौरान समाज में समाज सुधार के साथ विभिन्न तरीके से देश में भक्ति का प्रचार प्रसार होता था. इसी काल में एक ऐसे संत भी आए जिन्होंने अपने दर्शन शास्त्र और किताबों से अपने विचारों को जन जन तक पहुंचाने का कार्य किया. माधवाचार्य के नाम से मशहूर ये शख्स भक्ति आंदोलन के एक अहम अंग थे. वे तत्ववाद के प्रवर्तक थे जिसे द्वैतवाद के नाम से जाना जाता है. द्वैतवाद, वेदान्त के तीन प्रमुख दर्शनों में से एक है. मध्वाचार्य को वायु का तृतीय अवतार माना जाता है.
भारत के भक्ति एवं संत परंपरा में जिन तीन प्रमुख आचार्यों को गिना जाता है माधवाचार्य उनमें से एक हैं. माधव जी का जन्म विजयादशमी के दिन सन् 1238 ई. में वर्तमान कर्नाटक प्रदेश के उडुपी के निकट पाजका नामक ग्राम में हुआ था. इनके बचपन का नाम वासुदेव था. बाल्यकाल से ही माधव विलक्षण बुद्धि के होने के साथ-साथ खेलकूद, पर्वतारोहण, मल्लयुद्ध, भारोत्तोलन तथा तैराकी में भी उत्कृष्ट थे. वे अपने मधुर वचनों, श्लोकों के उच्चारण तथा मंदिर में सत्संग के लिए भी प्रसिद्ध रहे. बचपन से ही उनमें आध्यात्मिक खोज एवं शिक्षा के प्रति तत्परता दिखाई देती थी, जिसके कारण वह अल्पायु में ही संत बनना चाहते थे, परंतु घर के एकमात्र पुत्र होने के कारण वह घर छोड़कर नहीं जा सके. वह अपने दूसरे भाई विष्णुचित, जिन्हें माधव दर्शन के महान व्याख्याता के लिए जाना जाता है, के जन्म के बाद घर छोड़कर सन्यासी बनने के लिए चले गए.
माधव के पिता जी का नाम नादिल्य नारायण भट्ट व माता जी का नाम वेदवती था. सन्यासी बनने के लिए माधव ने तत्कालीन दक्षिण भारत के गुरु अच्छुयतप्रेक्षा से दीक्षा ली. वासुदेव जी ने अपने अध्यात्मिक चिंतन एवं दर्शन शास्त्र के अध्ययन से द्वितीय वाद के सिद्धांत को लोगों तक पहुंचाने का प्रयास हिमालय से कन्याकुमारी तक दौरा करते हुए किया. इसी द्वितीय सिद्धांत के कारण वो माधवाचार्य के नाम से जानने लगे. उन्होंने गोदावरी के निकट पद्मनाभ तीर्थ और कलिंग के निकट नरहरि तीर्थ को अपने शिष्यों के लिए अपनाया. उडुपी स्थित प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर की मूर्ति स्थापना माधवाचार्य के कर कमलों से संपन्न हुई. उन्होंने आठ मठों की स्थापना की. द्वितीय संप्रदाय को प्रवृति काल में चैतन्य महाप्रभु ने प्रवाहित होकर अपने जीवन में उतारा था और आज यह परंपरा इस्कान के माध्यम से समस्त विश्व में पहुंच रही है. माधवाचार्य ने 40 से अधिक पुस्तक एवं टीकाएं उपनिषद्, गीता एवं महाभारत, पुराण एवं ऋग्वेद के ऊपर लिखी, यहां तक कि “तंत्र सार संग्रह” नामक प्रतिमा शास्त्र के ऊपर भी पुस्तक लिखी थी. “कर्मविपाक” उनके संगीत शास्त्र के रूप में द्वादश स्त्रोत वैष्णव भक्ति संगीत में प्रसिद्ध हैं.
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