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वर्ष 1893 में एक व्यक्ति शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेने के लिए अमेरिकी सड़कों की खाक छान रहा था. तब भारत जाना जाता था साँप-सपेरों वाले देश के रूप में. वहाँ जाकर विवेकानंद को यह पता चला कि बिना किसी नामचीन व्यक्ति के प्रमाणपत्र के कोई भी व्यक्ति धर्म-संसद में किसी धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता. उनके पास ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं था. उनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो सितंबर में होने वाले धर्म-संसद के लिए एक-दो महीने पहले से शिकागो में रहते जो काफी महँगा शहर था. किसी ने उनकी मुलाकात हार्वड विश्वविद्यालय में यूनानी के प्रोफेसर जे.एच.राईट से करवाई. चार घंटे विवेकानंद से बातचीत के बाद वो प्रोफैसर उनसे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उनके रहने और खाने का इंतज़ाम कर दिया. तब विवेकानंद ने प्रमाणपत्र की अपनी समस्या बताई. इस पर उस प्रोफेसर ने तत्काल ही प्रतिनिधियों को चुनने वाली समिति के अध्यक्ष को लिखा और कहा कि आपसे प्रमाणपत्र माँगना कुछ वैसा ही है जैसा सूर्य से उसकी चमकने के अधिकार के बारे में पूछना. वैसा ही हुआ, शिकागो के धर्म-संसद में उसके संबोधन के बाद न्यूयॉर्क की सड़कों पर बड़े-बड़े पोस्टर लगे थे जिस पर उनकी बड़ी सी तस्वीर और उसके देश का नाम था. भारत को गौरवान्वित करने वाले वह व्यक्ति और कोई नहीं स्वामी विवेकानंद थे.
Swami Vivekananda Quote
स्वामी विवेकानंद आधुनिक भारत के एक क्रांतिकारी विचारक माने जाते हैं. 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में जन्मे स्वामी विवेकानंद के बचपन का नाम नरेंद्र नाथ था. इन्होंने अपने बचपन में ही परमात्मा को जानने की तीव्र जिज्ञासावश तलाश आरंभ कर दी. इसी क्रम में उन्होंने सन 1881 में पहली बार रामकृष्ण परमहंस से भेंट की और उन्हें अपना गुरु स्वीकार कर लिया तथा अध्यात्म-यात्रा पर चल पड़े. काली मां के अनन्य भक्त स्वामी विवेकानंद ने आगे चलकर अद्वैत वेदांत के आधार पर सारे जगत को आत्म-रूप बताया और कहा कि “आत्मा को हम देख नहीं सकते किंतु अनुभव कर सकते हैं. यह आत्मा जगत के सर्वांश में व्याप्त है. सारे जगत का जन्म उसी से होता है, फिर वह उसी में विलीन हो जाता है. उन्होंने धर्म को मनुष्य, समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए स्वीकार किया और कहा कि धर्म मनुष्य के लिए है, मनुष्य धर्म के लिए नहीं. भारतीय जन के लिए, विशेषकर युवाओं के लिए उन का नारा था – “उठो, जागोऔर लक्ष्य की प्राप्ति होने तक रुको मत.”
वो था सितंबर विवेकानंद का………….ये है सितंबर नरेन्द्र मोदी का
Swami Vivekananda speech in Chicago
31 मई, 1883 को वह अमेरिका गए. 11 सितंबर, 1883 में शिकागो के विश्व धर्म सम्मेलन में उपस्थित होकर अपने संबोधन में सबको भाइयों और बहनों कह कर संबोधित किया. इस आत्मीय संबोधन पर मुग्ध होकर सब बड़ी देर तक तालियां बजाते रहे. वहीं उन्होंने शून्य को ब्रह्म सिद्ध किया और भारतीय धर्म दर्शन अद्वैत वेदांत की श्रेष्ठता का डंका बजाया. उनका कहना था कि आत्मा से पृथक करके जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु से प्रेम करते हैं, तो उसका फल शोक या दुख होता है. अत: हमें सभी वस्तुओं का उपयोग उन्हें आत्मा के अंतर्गत मान कर करना चाहिए या आत्म-स्वरूप मान कर करना चाहिए ताकि हमें कष्ट या दुख न हो.
अमेरिका में चार वर्ष रहकर वह धर्म-प्रचार करते रहे तथा 1887 में भारत लौट आए. भारतीय धर्म-दर्शन का वास्तविक स्वरूप और किसी भी देश की अस्थिमज्जा माने जाने वाले युवकों के कर्तव्यों का रेखांकन कर स्वामी विवेकानंद सम्पूर्ण विश्व के ‘जननायक‘ बन गए.
प्रेरणादाता और मार्गदर्शक : स्वामी विवेकानंद (जयंती विशेषांक)
Swami Vivekananda’s quote
फिर बाद में विवेकानंद ने 18 नवंबर,1896 को लंदन में अपने एक व्याख्यान में कहा था, मनुष्य जितना स्वार्थी होता है, उतना ही अनैतिक भी होता है. उनका स्पष्ट संकेत अंग्रेजों के लिए था, किंतु आज यह कथन भारतीय समाज के लिए भी कितना अधिक सत्य सिद्ध हो रहा है.
Swami Vivekananda’s quote on Freedom
पराधीन भारतीय समाज को उन्होंने स्वार्थ, प्रमाद व कायरता की नींद से झकझोर कर जगाया और कहा कि मैं एक हजार बार सहर्ष नरक में जाने को तैयार हूं यदि इससे अपने देशवासियों का जीवन-स्तर थोडा-सा भी उठा सकूं.
स्वामी विवेकानंद ने अपनी ओजपूर्ण वाणी से हमेशा भारतीय युवाओं को उत्साहित किया है. उनके उपदेश आज भी संपूर्ण मानव जाति में शक्ति का संचार करते है. उनके अनुसार, किसी भी इंसान को असफलताओं को धूल के समान झटक कर फेंक देना चाहिए, तभी सफलता उनके करीब आती है. स्वामी जी के शब्दों में ‘हमें किसी भीपरिस्थिति में अपने लक्ष्य से भटकना नहीं चाहिए‘.
Swami Vivekananda’sDeath
स्वामी विवेकानंद ने अशिक्षा, अज्ञान, गरीबी तथा भूख से लडने के लिए अपने समाज को तैयार किया और साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय चेतना जगाने, सांप्रदायिकता मिटाने, मानवतावादी संवेदनशील समाज बनाने के लिए एक आध्यात्मिक नायक की भूमिका भी निभाई. 4 जुलाई, 1902 को कुल 39 वर्ष की आयु में विवेकानंद जी का निधन हो गया. इतनी कम उम्र में भी उन्होंने अपने जीवन को उस श्रेणी में ला खड़ा किया जहां वह मरकर भी अमर हो गए.
जब-जब मानवता निराश एवं हताश होगी, तब-तब स्वामी विवेकानंद के उत्साही, ओजस्वी एवं अनंत ऊर्जा से भरपूर विचार जन-जन को प्रेरणा देते रहेंगे और कहते रहेंगे-‘उठो जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति से पूर्व मत रुको.’……..Next
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