Menu
blogid : 3738 postid : 3636

तात्या टोप: भारत के इस छापामार सैनिक ने अंग्रेजों की नींद उड़ाई

Special Days
Special Days
  • 1020 Posts
  • 2122 Comments

tatya topeब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणी वीरों में एक रामचन्द्र पांडुरंग राव योलेकर उर्फ तात्या टोपे से शायद ही कोई अपरिचित हो. इस सेनानायक ने अपनी वीरता और रणनीति के जरिए न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपने नाम का डंका बजाया. सैनिक अभियानों में वह इतने कुशल थे कि मित्र ही नहीं, शत्रु भी उनके अभियानों को जिज्ञासा और उत्सुकता से देखने और समझने का प्रयास करते थे.


Read:भगोड़े बने जनरल परवेज मुशर्रफ


तात्या टोपे का जीवन

महाराष्ट्र में नासिक के योले (या यवले/यउले/यवला) ग्राम में सन 1814 को जन्मे तात्या टोपे अपने माता-पिता श्रीमती रुक्मिणी बाई व पांडुरंग अण्णा की एकमात्र संतति थे. तात्या टोपे का वास्तविक नाम ‘रामचंद्र पांडुरंग येवलेकर’ था. तथ्यों की मानें तो ऐसा पता चलता है कि तात्या का जन्म 1813 या 1814 के आसपास हुआ था. उनके पिता देशभक्त होने के साथ-साथ एक बहुत बड़े विद्वान भी थे. उनकी विद्वता उनकी जाति के अनुकूल थी. ऐसा माना जाता है कि तात्या का परिवार सन 1818 में नाना साहब पेशवा के साथ ही बिठूर आ गया था.


एक महत्त्वाकांक्षी युवक

तात्या टोपे व्यवहार से बहुत ही महत्त्वाकांक्षी और दूर की सोचने वाले नवयुवक थे. उन्होंने अधिकतर साल बाजीराव के तीन दत्तक पुत्र – नाना साहब, बाला साहब और बाबा भट्ट के साहचर्य में बिताए जिनका असर उनकी छवि पर साफ तौर पर देखा जा सकता है. वह बचपन से ही युद्ध की गुणवत्ता का बहुत ही बारीकियों से अध्ययन करते थे. वह बचपन से कई महाराथियों की कहानियां को सुनने में काफी रुचि दिखाते थे.


एक महानायक कमांडर

ऐसा माना जाता है कि तात्या टोपे को फांसी दिए जाने से लगभग एक साल पहले मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की ग़िरफ़्तारी के साथ ही 1857 के विद्रोहियों और अंग्रेजी फौजों की सीधी लड़ाई खत्म हो गई थी लेकिन उसके बाद भी तात्या टोपे की विश्व प्रसिद्ध छापामार नीति ने अंग्रेजों को काफी परेशान किया था. अपनी इसी नीति के चलते उन्होंने शत्रु के साथ लंबे समय तक संघर्ष जारी रखा. उन्होंने लगातार नौ मास तक उन आधे दर्जन ब्रिटिश कमांडरों को छकाया जो उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे.


1857 की लड़ाई में तात्या टोपे अपने साहसिक कार्यों और विजय अभियानों के चलते काफी विख्यात थे लेकिन फिर भी उन्हें झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के मुकाबले कम ख्याति मिली. रानी लक्ष्मीबाई के युद्ध-अभियान जहां केवल झांसी, कालपी और ग्वालियर के क्षेत्रों तक सीमित रहे थे, वहां तात्या एक विशाल राज्य के समान कानपुर के राजपूताना और मध्य भारत तक फैल गए थे. फिर भी उन्हें वह यश नहीं मिला जो रानी लक्ष्मीबाई को मिला.

अपनी संगठन क्षमता के लिए विख्यात इस योद्धा को 18 अप्रैल को मध्यप्रदेश शिवपुरी में फांसी दे गई. आज भी लोग उनके गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को याद करते हैं.


Read:

वीर छत्रपति शिवाजी

रानी लक्ष्मीबाई : वीरता और शौर्य की बेमिसाल कहानी


Tags: tatya tope, tatya tope in hindi, Ramachandra Pandurang Tope, Indian Rebellion of 1857, revolt of 1857, Indian freedom struggle, तात्या टोप, 1857 का संग्राम.

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh