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आज शिक्षक दिवस (Teachers Days) है जिसे पूरे देशभर में भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है. समाज में विद्या, विद्यालय और शिक्षक का स्थान सर्वोपरि माना जाता है लेकिन आज जो स्थिति है वहां यह तीनों दरकती हुई दिखाई दे रही हैं.
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जिस विद्या को मानव विकास के लिए जरूरी माना जाता है आज उसे बाजार ने हाईजैक कर लिया है. कभी यह विद्या मामूली सी गुरुदक्षिणा से ग्रहण की जाती थी आज इसी विद्या के लिए विद्यार्थियों को मोटी रकम चुकानी पड़ती है. व्यापारीकरण, व्यवसायीकरण तथा निजीकरण ने शिक्षा क्षेत्र को अपनी जकड़ में ले लिया है. मण्डी में शिक्षा क्रय-विक्रय की वस्तु बनती जा रही है. इसे बाजार में निश्चित शुल्क से अधिक धन देकर खरीदा जा सकता है.
“शिक्षक बने सौदागर, शिक्षा बाजार नजर आती है
छात्र खरीद रहे सौदा, शिक्षा मंडी-हाट नजर आती है”
गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है, जिसके कई स्वर्णिम उदाहरण हमारे इतिहास में दर्ज हैं. लेकिन वर्तमान समय में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपने अनैतिक कारनामों और लालची स्वभाव के कारण इस परंपरा पर गहरा आघात कर रहे हैं. ‘शिक्षा’ जिसे अब एक व्यापार समझकर बेचा जाने लगा है, किसी भी बच्चे का एक मौलिक अधिकार है लेकिन अपने लालच को शांत करने के लिए आज तमाम शिक्षक अपने ज्ञान की बोली लगाने लगे हैं. इतना ही नहीं वर्तमान हालात तो इससे भी बदतर हो गए हैं क्योंकि शिक्षा की आड़ में कई शिक्षक अपने छात्रों का शारीरिक और मानसिक शोषण करने को अपना अधिकार ही मान बैठे हैं.
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मानव संसाधन मंत्रालय एवं स्वयंसेवी संस्था ‘असर’ की रिपोर्टों से लिए गए आंकड़ों के मुताबिक:
1. देश भर के 13.7 करोड़ बच्चे सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ते हैं.
2. देश में अब भी प्राथमिक शिक्षकों के 7.4 लाख पद खाली हैं.
3. प्राथमिक स्कूलों में कुल 437958 अस्थाई शिक्षक हैं.
4. 63.66 प्रतिशत प्राथमिक स्कूलों में बिजली की कोई भी व्यवस्था नहीं है.
5. 60 प्रतिशत स्कूलों में किचेन की कोई व्यवस्था नहीं है.
6. सर्व शिक्षा अभियान की तरह 618089 नए शौचालय बनाए गए हैं. 43.5% विद्यालयों में आज भी शौचालय की व्यवस्था नहीं है.
यह तो प्राथमिक स्कूलों की स्थिति है माध्यमिक और उच्चतम स्कूलों की स्थिति भी कमोबेश यही है. देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद भी केंद्र और राज्य सरकारें देश के सभी स्कूलों में पेयजल और शौचालय समेत सभी बुनियादी सुविधाएं प्रदान करने में असफल रही हैं.
बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए भारत सरकार ने शिक्षा का अधिकार तीन साल पहले ही लागू कर दिया था लेकिन इसका ज्यादा फायदा नहीं मिला. उलटे मिड डे मिल में मिलावट की वजह से केंद्र और राज्य सरकार की काफी किरकिरी हुई.
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