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Tulsidas Biography in Hindi
हिन्दी साहित्य जगत के विस्तृत नभ में कवि गोस्वामी तुलसीदास एक ऐसे सितारे हैं जिनकी रोशनी से नभ-मंडल प्रकाशित है. गोस्वामी तुलसीदास का नाम आते ही लोग “रामचरित मानस” को याद करते हैं. गोस्वामी तुलसीदास रचित “हनुमान चालिसा” को पढ़ने मात्र से भय का नाश हो जाता है. ऐसे महान कवि वास्तव में हिन्दी साहित्य जगत के अग्रणी कवि और शिरोमणि हैं.
Tulsidas Ramcharitmanas
तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का भी अवतार माना जाता है जो मूल आदिकाव्य रामायण के रचयिता थे. श्रीराम जी को समर्पित ग्रन्थ श्री रामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारांतर से अवधी भाषांतर था जिसे समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है.
Profile of Tulsidas
गोस्वामी तुलसीदास का जन्म राजापुर गांव (Rajapur Village, U.P.) (वर्तमान बांदा जिला) उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में हुआ था. संवत् 1554 की श्रावण मास की अमावस्या के सातवें दिन तुलसीदास का जन्म हुआ था. उनके पिता का नाम आत्माराम (Atma Ram) और माता का नाम हुलसी देवी (Hulsi Devi) था. किंवदंती है कि नौ महीने की बजाय तुलसी मां के गर्भ में बारह माह रहे. जन्म लेते ही उनके मुख से राम शब्द निकला.
अतएव उनका घर का नाम ही रामबोला पड गया. मां तो जन्म देने के बाद दूसरे ही दिन चल बसीं, पिता ने किसी और अनिष्ट से बचाने के लिये बालक को चुनियां नाम की एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गए. जब रामबोला साढ़े पांच वर्ष का हुआ तो चुनियां भी नहीं रही. वह गली-गली भटकता हुआ अनाथों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया.
मान्यता है कि भगवान शंकर की प्रेरणा से स्वामी नरहरिदास ने बालक तुलसी को ढूंढ़ निकाला और उन्हें शिक्षा दी. इसके बाद तुलसीदास का विवाह रत्नावली के साथ हुआ.
Story of Tulsidas and his Wife
कहा जाता है कि तुलसीदास का ब्याह तो हो गया था लेकिन उनका गौना नहीं हुआ था इसलिए उन्हें कुछ समय पत्नी से अलग रहना पड़ा. पत्नी से अलग रहकर उन्होंने वेद-वेदांग का अध्ययन करना शुरू कर दिया. लेकिन एक दिन पत्नी की याद आने पर वह गुरू की आज्ञा लेकर पत्नी से मिलने गए. पत्नी से मिलने के लिए वह उफनती हुई नदी भी पार कर गए .
रात के अंधेरे में वह अपनी पत्नी के घर उससे मिलने तो पहुंच गए पर उसने लोक-लज्जा के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे. उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे के माध्यम से जो शिक्षा उन्हें दी उसने ही तुलसीराम को महान तुलसीदास बना दिया. रत्नावली ने जो दोहा कहा था वह इस प्रकार है:
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
अर्थात जितना प्रेम मेरे इस हाड-मांस के बने शरीर से कर रहे हो, उतना स्नेह यदि प्रभु राम से करते, तो तुम्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती.
Tulsidas ke Dohe
यह सुनते ही तुलसीराम की चेतना जागी और उसी समय से वह प्रभु राम की वंदना में जुट गए तुलसीदास भ्रमण करते रहे और इस प्रकार समाज की तत्कालीन स्थिति से इनका सीधा संपर्क हुआ. इसी दीर्घकालीन अनुभव और अध्ययन का परिणाम तुलसी की अमूल्य कृतियां हैं, जो उस समय के भारतीय समाज के लिए तो उन्नायक सिद्ध हुई ही, आज भी जीवन को मर्यादित करने के लिए उतनी ही उपयोगी हैं. तुलसीदास द्वारा रचित ग्रंथों की संख्या 39 बताई जाती है. इनमें रामचरित मानस, कवितावली, विनयपत्रिका, दोहावली, गीतावली, जानकीमंगल, हनुमान चालीसा, बरवै रामायण आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं.
संवत् 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को तुलसीदास जी ने “राम-राम” कहते हुए अपना शरीर परित्याग किया.
संवत सोलह सौ असी ,असी गंग के तीर ।
श्रावण शुक्ला सप्तमी ,तुलसी तज्यो शरीर ॥
तुलसीदास ने ही दुनिया को “हनुमान चालिसा” (Hanuman Chalisa) नामक डर को मिटाने वाला मंत्र दिया है. कहा जाता है कि हनुमान चालिसा के पाठ से सभी भय-विकार मिट जाते हैं. तुलसीदास जी ने देवनागरी लिपि में अपने लेख लिख हिन्दी को आगे बढ़ाने में भी काफी सहायता की है. भारतभूमि सदैव अपने इस महान रत्न पर नाज करेगी.
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