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तीन बातें जो आपने गोविंद वल्लभ पंत के बारे में नहीं सुनी होंगी

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महान स्वतंत्रता सेनानी गोविंद वल्लभ पंत का नाम जब भी लिया जाता है तो हमारे सामने एक ऐसे आंदोलनकारी की तस्वीर उभर का सामने आती है जिसने आजादी की लड़ाई में सक्रियता से भाग लिया. उनका योगदान ना केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाने में था बल्कि आजादी के बाद भारतीय संविधान में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा को खत्म कराने में भी था.


उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री और भारत रत्न गोविंद बल्लभ पंत के जीवन के बारे में आपने बहुत कुछ सुन रखा होगा. आज हम आपको उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को बताएंगे जो आप जानते नहीं होंगे:


pant51. उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जन्में गोविंद वल्लभ पंत 10 साल तक स्कूल नहीं गए. उनकी शुरुआती शिक्षा घर पर ही हुई. वह पढ़ने में बहुत ही तेज थे, लेकिन 14 साल की उम्र में उनके साथ एक ऐसी घटना घटी जिसकी वजह से उन्हें पढ़ाई में काफी बाधा पहुंची. उन्हें छोटी सी उम्र में ही हार्ट अटैक की बीमारी हो गई. पहला हार्ट अटैक उन्हें 14 साल की उम्र में ही आया था.


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2. कम ही लोगों को पता होगा कि गोविंद वल्लभ पंत ने तीन शादियां की थीं. उनकी दो पत्नियों का निधन 1909 और 1914 में हो गई. उन्होंने तीसरी शादी 1916 में कलावती से की जिनसे उन्हें एक बेटा (कृष्ण चंद्र पंत) हुआ जो बाद में राजनेता बना. इसके अलावा उनकी दो बेटियां भी थीं लक्ष्मी और पुष्पा.


3. बात 1928 की है जब साइमन कमीशन के खिलाफ लखनऊ में गोविंद वल्लभ पंत अपने कई साथियों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे. उस समय साइमन कमीशन के खिलाफ पूरे देशभर में लहर थी. विरोध प्रदर्शन के दौरान अंग्रेजी सैनिकों ने गोविंद वल्लभ पंत को बुरी तरह से घायल कर दिया जिसकी वजह से वह पूरी जिंदगी पीठ के दर्द से कराहते रहे. इसके बावजूद उन्होंने संघर्ष करते हुए आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया. अपने डायरी में जवाहरलाल नेहरू ने गोविंद वल्लभ पंत के बारे में लिखा है कि कैसे पंत जी ने एक साहसी इंसान की तरह हर आंदोलन का सामना किया. वह अपने पीठ के दर्द से काफी परेशान रहते थे इसके बावजूद भी उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कुराहट रहती थी.


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