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भारत में जमींदारी प्रथा अंग्रेजों के समय से ही एक समस्या रही है. आजादी के बाद भी यह समस्या बरकरार रही. नतीजा यह हुआ कि सरकार को इससे संबंधित कानून बनाना पड़ा. उस समय सरकार के इस कानून का काफी विरोध हुआ. तब महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी एवं महान स्वतंत्रता सेनानी विनोबा भावे ने ऐसे भूदान आंदोलन की शुरुआत की जो पूरी तरह से अहिंसात्मक था.
विनोबा भावे का भूदान आंदोलन- Vinoba Bhave Land Gift Movement
विनोबा भावे ने जन मानस को जागृत करने के लिए सर्वोदय आंदोलन शुरू किया था. वर्ष 1951 में तेलंगाना क्षेत्र के पोचमपल्ली ग्राम के दलितों ने विनोबा भावे से उन्हें जीवनयापन करने के लिए भूमि देने की प्रार्थना की थी. तब विनोबा भावे ने गांव में एक प्रार्थना सभा का आयोजन किया जिसमे हजारों लोगों ने भाग लिया. उन्होंने सरकार से सहायता न लेकर क्षेत्र के धनवान भूमि मालिकों से अपनी जमीन का कुछ हिस्सा दलितों को देने का आग्रह किया. आश्चर्यजनक रूप से बिना किसी हिंसा के सभी बड़े भू स्वामी सौ एकड़ भूमि देने के लिए तैयार हो गए. दलितों ने कहा कि उन्हें केवल 80 एकड़ भूमि की ही जरूरत है. इस तरह से विनोबा भावे को क्षेत्र की समस्या का हल मिल गया. उन्होंने भूदान के लिए पूरे क्षेत्र का दौरा किया और अगले सात सप्ताहों में उन्होंने तेलंगाना क्षेत्र के 200 गांवों का दौरा किया और 12000 एकड़ भूमि एकत्रित कर ली.
विनोवा भावे का आंदोलन यहीं नहीं रुका. उन्होंने पूरे देश में यात्रा कर सभी लोगों से अपनी भूमि का सातवां हिस्सा, भूमि रहित और गरीब नागरिकों को देने का आग्रह किया. उनका यह आंदोलन पूरी तरह अहिंसात्मक और शांत था. इस आंदोलन में मिली जमीन और संपत्ति से उन्होंने 1000 गांवों में निर्धन जनता के रहने की व्यवस्था की जिनमें से 175 गांव अकेले तमिलनाडु में ही बनाए गए.
प्रथम ‘व्यक्तिगत सत्याग्रही‘-First Individual Satyagrahi
11 अक्टूबर, 1940 को गांधीजी द्वारा ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ के प्रथम सत्याग्रही के तौर पर विनोबा भावे को चुना गया. प्रसिद्धि की चाहत से दूर विनोबा भावे इस सत्याग्रह के कारण बेहद मशहूर हो गए. उनको गाँव-गाँव में युद्ध विरोधी तक़रीरें करते हुए आगे बढते चले जाना था. ब्रिटिश सरकार द्वारा 21 अक्टूबर को विनोबा को गिरफ्तार किया गया. ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ का अर्थ यह है कि सामूहिक आंदोलन न करके व्यक्तिगत रूप से सरकार की नीतियों के खिलाफ सत्याग्रह किया जाना. विनोबा भावे के बाद जवाहरलाल नेहरू दूसरे ‘व्यक्तिगत सत्याग्रही’ रहे.
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विनोवा भावे का जीवन
अहिंसा और सद्भावना को अपने जीवन का मूलमंत्र मानने वाले आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को नासिक, महाराष्ट्र के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. विनोबा भावे, जिन्हें महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी के रूप में भी जाना जाता है, का वास्तविक नाम विनायक नरहरि भावे था.
छोटी सी उम्र में ही विनोबा भावे ने रामायण, महाभारत और भागवत गीता का अध्ययन कर लिया था. विचारों को उनकी माता ने बहुत ज्यादा प्रभावित किया था. विनोबा भावे का कहना था कि उनकी मानसिकता और जीवनशैली को सही दिशा देने और उन्हें अध्यात्म की ओर प्रेरित करने में उनकी मां का ही योगदान है. विनोबा भावे गणित के बहुत बड़े विद्वान थे. लेकिन ऐसा माना जाता है कि 1916 में जब वह अपनी दसवीं की परीक्षा के लिए मुंबई जा रहे थे तो उन्होंने महात्मा गांधी का एक लेख पढ़कर शिक्षा से संबंधित अपने सभी दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया था.
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