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भारत संस्कृति प्रधान देश है. हमारी संस्कृति में हर उस चीज को पूजनीय बताया गया है जिसका प्रयोग हम दैनिक जीवन में करते हैं फिर चाहे वह जल हो या अग्नि. और आवश्यक वस्तुओं के बकायदा देव भी हैं जैसे पानी के लिए जल देव, अग्नि के अग्निदेव, वायु के लिए हम पवनदेव को पूजते हैं आदि. इसी तरह जीवन में यंत्रों का भी विशेष महत्व है. कलियुग का एक नाम कलयुग यानि कल का युग भी है. कल शब्द का एक मतलब यंत्र भी होता है यानि यंत्रों का युग. आप सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक हजारों यंत्रों के सहारे ही तो चलते हैं. फोन, बिजली, पानी की टंकी जैसे ना जानें कितने यंत्र हम प्रतिदिन इस्तेमाल करते हैं. तो ऐसे में यंत्रों के देव को हम भूल कैसे सकते हैं.
भारतीय संस्कृति और पुराणों में भगवान विश्वकर्मा को यंत्रों का अधिष्ठाता और देव माना गया है. भगवान विश्वकर्मा को हिंदू संस्कृति में यंत्रों का देव माना जाता है. भगवान विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया. इनके द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त कर रहा है. प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का भगवान विश्वकर्मा ने उपदेश दिया है. माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका, हस्तिनापुर जैसी जगहों के भी रचयिता भगवान विश्वकर्मा ही थे.
भगवान विश्वकर्मा की जयंती वर्षा के अंत और शरद ऋतु के शुरू में मनाए जाने की परंपरा रही है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसी दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं. चूंकि सूर्य की गति अंग्रेजी तारीख से संबंधित है, इसलिए कन्या संक्रांति भी प्रतिवर्ष 17 सितंबर को ही पड़ती है. जैसे मकर संक्रांति अमूमन 14 जनवरी को ही पड़ती है. ठीक उसी प्रकार कन्या संक्रांति भी प्राय: 17 सितंबर को ही पड़ती है. इसलिए विश्वकर्मा जयंती भी 17 सितंबर को ही मनायी जाती है.
विश्वकर्मा पूजा के दिन खास तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों में, फैक्ट्रियों, लोहे की दुकान, वाहन शोरूम, सर्विस सेंटर आदि में पूजा होती है. इस दिन मशीनों को साफ किया जाता है. उनका रंग रोगन होता है और पूजा की जाती है. इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं क्यूंकि विश्वकर्मा पूजन के दिन मशीनों पर काम करना वर्जित माना जाता है. उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित करके उसकी पूजा की जाती है. कई लोग विश्वकर्मा जी की पूजा दिवाली के अगले दिन यानि गोवर्धन पूजा के दिन करते हैं. आज के दिन को भारत में श्रम दिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
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