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मुर्दे को छूकर नहाते हैं, जानवरों को मारकर खाते हैं !
मुर्दे को कब्रिस्तान में दफनाते या शमशानघाट पर जलाते हैं ,
तो क्यूं हम कुछ जानवरों को मारकर अपने घर में जलाते (पकाते) हैं,
और अपने पेट में दफनाते(खाते) हैं.
यह लाइनें आज विश्व पशु दिवस(World Animal Day 2012) के मौके पर बहुत हद तक सही साबित हो रही हैं.
जानवर मनुष्यों के हमेशा से ही सबसे अच्छे दोस्त साबित होते रहे हैं. मनुष्य ने अपनी सभ्यता की शुरुआत से ही जानवरों के साथ बेहतरीन दोस्ती बनाकर रखी और उसी का नतीजा है कि आज जानवर हमारी कई जरूरतों को पूरा कर रहे हैं. लेकिन इन सबके बदले हमने जानवरों को क्या दिया है? उन्हें बेघर कर दिया, उन्हें ही अपना भोजन बना लिया और जो कभी हमारे परम मित्र हुआ करते थे उन्हें अपना परम शत्रु बना लिया है. आज विश्व पशु दिवस(World Animal Day 2012) है और इस मौके पर चलिए जानवरों के बारे में कुछ जानें.
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आज इंसान ने अपने भोजन और शौक के लिए कई ऐसे जानवरों को लुप्त होने के कगार तक ला खड़ा किया है जो कभी इस धरती पर बड़ी संख्या में थे. उदाहरण के लिए शार्क और व्हेल को खाने की प्लेट में रखने वाले तथाकथित शौकीनों की वजह से जल के इन प्राणियों की संख्या आज नगण्य हो चुकी है. कुछ ऐसा ही हाल नीलगायों का भी हुआ है.
जंगली जानवरों की जंगली हालत
किताबों व लोक कथाओं में मनुष्य और जानवरों की दोस्ती के कई किस्से मशहूर हैं. जानवर मनुष्य का सबसे अच्छा दोस्त भी माना गया है और इनकी दोस्ती की कई मिसालें दी जाती हैं. लेकिन कुछ वर्षों से जंगली जानवरों ने मानव बस्तियों पर हमला कर मनुष्य को ही शिकार बनाना शुरू कर दिया है. एक जमाने में दोनों अपने-अपने क्षेत्र का उपयोग कर शांतिपूर्वक रह रहे थे. विकास की बयार और आगे निकलने की होड़ में जब मानव ने जानवरों के क्षेत्र में अपना अधिकार जमाने के प्रयास किए तो मामला पेचीदा हुआ. मनुष्य ने अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया और जंगलों का कटान कर बस्तियां बसाई. इसी जद्दोजहद में जब जंगली जानवरों के रहने के लिए घर नहीं रहा व भोजन तलाशने में दिक्कत हुई तो मजबूरन उन्हें मानवीय बस्तियों का रुख करना पड़ा. यही कारण है कि जानवर हिंसक हुए और बस्तियों पर इनके हमले बढ़े हैं.
बंदर, सुअर व नील गाय लोगों की फसलों के दुश्मन बने हैं. रातोंरात किसानों की खड़ी फसल चट होती रही है. जंगलों पर कुल्हाड़ी चलाने के परिणाम हमारे सामने हैं और हमें यह तब तक भुगतने पड़ सकते हैं जब तक कि हम जंगली जानवरों को उनके रहने की जगह यानि जंगल वापस नहीं कर देते. यह तभी संभव है जब मानव जंगल में अतिक्रमण न करे और जानवरों को शांतिपूर्वक रहने दे क्योंकि जानवर तभी हिंसक होता है जब उसे अपनी जान को खतरा महसूस होता है.
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आवारा जानवरों की दयनीय स्थिति
जंगली जानवरों की स्थिति को तो हम काबू कर ही नहीं सकते लेकिन सरकार और प्रशासन शहरों में फैले आवारा जानवरों को भी सरंक्षित नहीं कर पाती. सड़कों पर खुले घूमते कुत्ते, गाएं और अन्य जानवर जनता के लिए तो मुसीबत पैदा करते ही हैं साथ ही यह कई बार खुद उनके लिए भी मुसीबत का कारण बन जाता हैं.
कहां खो गई वह आवाज
विश्व पशु दिवस(World Animal Day 2012) में यह जानना जरूरी है कि बेजुबान पशुओं के प्रति हम क्या कर रहे हैं. हमारा बर्ताव कैसा होना चाहिए इस पर सोच नहीं बदली तो वह दिन दूर नहीं है जब पशु-पक्षी ढूंढ़े नहीं मिलेंगे. मुंडेर पर कौवे की कौ-कौ व आंगन में गौरैया की चहक तो दूर ही हो गयी है. पशुओं की संख्या भी दिन प्रतिदिन घटती जा रही है. गायों की भी संख्या में पिछले काफी समय से कम हुई है. ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन लगाकर गायों की दुग्ध क्षमता तो बढ़ती जाती है लेकिन उनकी जीवन क्षमता बहुत ज्यादा कम होती है.
विश्व पशु दिवस
पशुओं के अधिकारों के बारे में जागरुकता फैलाने के लिये दुनिया भर में हर साल चार अक्टूबर के दिन को विश्व पशु दिवस(World Animal Day 2012) के रूप में मनाया जाता है. इसकी शुरुआत 1931 में इटली के फ्लोरेंस शहर से हुई थी. आज यह हर देश में चार अक्टूबर (04 October World Animal Day) को ही मनाया जाता है.
आपको जानकर अचरज होगा कि एक शाकाहारी व्यक्ति एक साल में करीब 100 से अधिक पशुओं की जान बचा सकता है.
तो आइए आज विश्व पशु दिवस(World Animal Day 2012) के मौके पर हम सभी मिलकर शाकाहारी बनने का प्रण करें और कोशिश करें कि जितना संभव हो सकेगा जानवरों के प्रति स्नेह करेंगे.
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