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आज विश्व भर में एकल परिवार की जैसे लहर सी फैल रखी है. बच्चे बड़े होकर नौकरी क्या करने लगते हैं, उन्हें खुद के लिए थोड़ा स्पेस चाहिए होता है और वह स्पेस उन्हें लगता है अलग रहकर ही मिल पाता है. मैट्रोज में तो अब खुद मां बाप ही बच्चों को नौकरी और शादीशुदा होने के बाद अलग परिवार रखने की सलाह देते हैं. लेकिन अकेला रहने की एवज में समाज को काफी कुछ खोना पड़ रहा है. परिवार से अलग रहने पर बच्चों को ना तो बड़ों का साथ मिल पा रहा है जिसकी वजह से नैतिक संस्कार दिन ब दिन गिरते ही जा रहे हैं और दूसरा, इससे समाज में बिखराव भी होने लगने लगता है.
कभी नौकरी की चाह में तो कभी आजादी की चाह में आजकल के युवा अकेला रहना पसंद करते हैं और आजकल के एकल परिवार में पति-पत्नी को लगता है कि वह अपने बच्चे की परवरिश खुद सही ढंग से कर पाएंगे जो कई मायनों में गलत भी नहीं है लेकिन जो बात बड़े बुजुर्गों के साथ पल-बढ़कर प्राप्त होती है वह अलग ही है. संस्कारों का पाठ एकल परिवार में रहकर पढ़ा पाना बहुत मुश्किल है और यही वजह है कि मैट्रोज में बच्चों का नैतिक विकास बहुत कम हो रहा है और समाज में नैतिकता के पैमाने घटते जा रहे हैं.
समाज में घटती नैतिकता के दुष्परिणाम हम सबके सामने हैं ही. बच्चों का अनैतिक कार्यों में शामिल होना, सेक्स के प्रति उनकी हिंसात्मक प्रतिक्रिया, प्रेम का गलत मतलब, स्कूल में पढ़ने की जगह मोबाइल जैसी चीजों में समय बर्बाद करना, मां बाप का कहना ना मानना ऐसी कई घटनाएं है जिनकी वजह से यह साबित हो गया है कि गिरता नैतिक स्तर समाज को डुबो रहा है.
संयुक्त राष्ट्र ने इसी बात को ध्यान में रखते हुए साल 2010 में 15 मई को विश्व परिवार दिवस मनाने का निर्णय लिया था ताकि समाज में परिवार के महत्व को जनता तक पहुंचाया जा सके.
हालांकि भारत में एकल परिवारवाद अभी ज्यादा नहीं फैला है. आज भी भारत में ऐसे कई परिवार हैं जिनकी कई पीढ़ियां एक साथ रहती हैं और कदम-कदम पर साथ निभाती हैं. लेकिन दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ने लगी है.
उम्मीद है जल्द ही समाज में परिवार की अहमियत दुबारा बढ़ने लगेगी और लोगों में जागरुकता फैलेगी कि वह एक साथ एक परिवार में रहें जिसके कई फायदे हैं.
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