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World Food Day 2012: कोई खाकर मरता है तो कोई बिना खाए

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कैसी अजीब है यह दुनिया. यहां कोई बिना खाए भूख से मरता है तो कोई अधिक खाने से होने वाली बीमारी से मर जाता है. यहां गरीब हजारों कदम पैदल दो वक्त की रोटी कमाने के लिए चलता है तो वहीं अमीर अपने खाने को पचाने के लिए. रोटी ही इंसान की वह जरूरत है जिसके लिए वह जिंदगी भर अपना पसीना बहाता है लेकिन इस मेहनत के बाद भी बहुत कम लोगों को इस रोटी की जद्दोजहद से मुक्ति मिल पाती है. इनमें से कई जानें तो बिन रोटी के ही अपना दम तोड़ देती हैं.


hungerMalnutrition in World: भूख से मरने वालों की तस्वीर

संसार में भोजन की कमी और भूख से प्रतिवर्ष करोड़ों जानें काल के गाल में समा जाती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वेक्षण के अनुसार विकासशील देशों में प्रति पांच व्यक्ति में एक व्यक्ति कुपोषण का शिकार है. इनकी संख्या वर्तमान में लगभग 72.7 करोड़ है. 1.2 करोड़ बच्चों में लगभग 55 प्रतिशत कुपोषित बच्चे मृत्यु के मुंह में चले जाते हैं. भूख और कुपोषण से मरने वाले देशों की सूची के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत को 88 देशों में 68वां स्थान मिला है.

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Malnutrition in India: कुपोषण राष्ट्रीय शर्म

कुपोषण आज देश के लिए राष्ट्रीय शर्म है. भारत में कुपोषण की समस्या कुछ इलाकों में बहुत ज्यादा है. यही वजह है कि विश्व में कुपोषण से जितनी मौतें होती हैं, उनमें भारत का स्थान दूसरा है. वास्तव में कुपोषण बहुत सारे सामाजिक-राजनीतिक कारणों का परिणाम है. जब भूख और गरीबी राजनीतिक एजेंडा की प्राथमिकता में नहीं होती तो बड़ी तादाद में कुपोषण सतह पर उभरता है. भारत को ही देख लें, जहां कुपोषण गरीब और कम विकसित पड़ोसियों मसलन बांग्लादेश और नेपाल से भी अधिक है. यहां तक कि यह उप-सहारा अफ्रीकी देशों से भी अधिक है, क्योंकि भारत में कुपोषण का दर लगभग 55 प्रतिशत है, जबकि अफ्रीका में यह 27 प्रतिशत के आसपास है.


BOY HUNGRYWorld Food Day

सिर्फ भारत ही नहीं अपितु विश्व के कई देशों में खाने की भारी किल्लत है. खाद्यान्नों की कमी और बढ़ती जनसंख्या ने विश्व में ऐसी विकट स्थिति पैदा की है जहां करोड़ों लोग दो वक्त की रोटी के लिए अपना खून-पसीना एक करने को बेबस हैं. पापी पेट के आगे कड़ी मेहनत के बावजूद भी विश्व के हर कोने में प्रतिदिन कई जानें अपना दम तोड़ देती हैं.


World Food Day 2012

विश्व में खाद्यान्नों की तरफ जागरुकता फैलाने और भूख से एक बड़ी लड़ाई लड़ने के लिए ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ ए ओ) की स्थापना 16 अक्टूबर, 1945 को की थी. साल 1979 से 16 अक्टूबर के दिन को विश्व खाद्य दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया. इस साल की थीम है कृषि सहकारिता: विश्व खाद्यान्न की कुंजी. (Agricultural cooperatives – key to feeding the world)

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अगर हर देश कृषि के क्षेत्र में एक दूसरे की मदद करें तो इस बात की संभावना अधिक है कि एक समय आते-आते हमारे सामने खाद्यान्नों की परेशानी लगभग-लगभग खत्म हो जाए.


सड़ता अनाज मरता किसान

लेकिन क्या सिर्फ कृषि उत्पाद बढ़ा कर और खाद्यान्न को बढ़ा कर हम भूख से अपनी लड़ाई को सही दिशा दे सकते हैं. चाहे विश्व के किसी कोने में इस सवाल का जवाब हां हो पर भारत में इस सवाल का जवाब ना है और इस ना की वजह है खाद्यान्नों को रखने के लिए जगह की कमी. यूं तो भारत विश्व में खाद्यान्न उत्पादन में चीन के बाद दूसरे स्थान पर पिछले दशकों से बना हुआ है. लेकिन यह भी सच है कि यहां प्रतिवर्ष करोड़ों टन अनाज बर्बाद भी होता है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार लगभग 58,000 करोड़ रुपये काखाद्यान्न भंडारण आदि तकनीकी के अभाव में नष्ट हो जाता है. भूखी जनसंख्या इन खाद्यान्नों पर ताक लगाए बैठी रह जाती है. कुल उत्पादित खाद्य पदार्थो में केवल दो प्रतिशत ही संसाधित किया जा रहा है.


भारत में लाखों टन अनाज खुले में सड़ रहा है. यह सब ऐसे समय हो रहा है जब करोड़ों लोग भूखे पेट सो रहे हैं और छह साल से छोटे बच्चों में से 47 फीसदी कुपोषण के शिकार हैं.

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ऐसा नहीं है कि भारत में खाद्य भंडारण के लिए कोई कानून नहीं है. 1979 में खाद्यान्न बचाओ कार्यक्रम शुरू किया गया था. इसके तहत किसानों में जागरूकता पैदा करने और उन्हें सस्ते दामों पर भंडारण के लिए टंकियां उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया था. लेकिन इसके बावजूद आज भी लाखों टन अनाज बर्बाद होता है. तमाम लोग दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इसी जद्दोजहद में गरीब दम तक तोड़ देते हैं, जबकि सरकार के पास अनाज रखने को जगह नहीं है.


ऐसा भी नहीं है कि सरकार ने भूख से लड़ने के लिए कारगर उपाय नहीं किए हैं. देश में आज खाद्य सुरक्षा व मानक अधिनियम 2006 के तहत खाद्य पदार्थो और शीतल पेय को सुरक्षित रखने के लिए विधेयक संसद से पारित हो चुका है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, नरेगा, मिड डे भोजन, काम के बदले अनाज, सार्वजानिक वितरण प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा नेट, अंत्योदय अन्न योजना आदि कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, ताकि सभी देशवासियों की भूख मिटाने के लिए ही नहीं, बल्कि स्वतंत्र रूप से जीवनयापन के लिए रोजगार परक आय व पोषणयुक्त भोजन मिल सके. लेकिन कागजों पर बनने वाली यह योजनाएं जमीन पर कितनी अमल की जाती हैं इसका अंदाज आप भारत में भूख से मरने वाले लोगों की संख्या से लगा सकते हैं.

भूख की वैश्विक समस्या को तभी हल किया जा सकता है जब उत्पादन बढ़ाया जाए. साथ ही उससे जुड़े अन्य पहलुओं पर भी समान रूप से नजर रखी जाए. खाद्यान्न सुरक्षा तभी संभव है जब सभी लोगों को हर समय, पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक तत्वों से युक्त खाद्यान्न मिले जो उनकी आहार संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर सके. साथ ही कुपोषण का रिश्ता गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी, आदि से भी है. इसलिए कई मोर्चों पर एक साथ मजबूत इच्छाशक्ति का प्रदर्शन करना होगा.

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