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आओ सब मिलकर करें जतन, शिक्षा है अनमोल रतन’, शायद यही भाव लेकर पूरे जज्बे के साथ जब मलाला यूसुफजई स्कूल में अपनी पढ़ाई पूरी करने पर अड़ी रही तो तहरीके-तालिबान ने उसे गोली मार दी. इस घटना ने पूरे विश्वभर को न केवल हैरान किया बल्कि मलाला की शिक्षा के प्रति उत्सुकता को देखकर उन राष्ट्रों को संदेश दिया जो महिलाओं के लिए शिक्षा को उपयुक्त नहीं मानते.
विश्व के लिए आदर्श बन चुकी आज मलाला तो पूरी तरह से स्वस्थ है. लेकिन उससे प्रेरणा लेकर आज कई एनजीओ और उनसे जुड़ी महिलाएं शिक्षा के महत्व को समझाने में लगी हैं.
साक्षरता न होने से किसी देश को कितना नुकसान उठाना पड़ता है इसका सबूत वहां की विकास दर से ही मिल जाता है. विश्व में साक्षरता के महत्व को ध्यान में रखते हुए ही संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) ने 17 नवंबर, 1965 को आठ सितंबर का दिन विश्व साक्षरता दिवस के लिए निर्धारित किया था. 1966 में पहला विश्व साक्षरता दिवस मनाया गया था और तब से हर साल इसे मनाए जाने की परंपरा जारी है. संयुक्त राष्ट्र ने वैश्विक समुदाय को साक्षरता के प्रति जागरुक करने के लिए इसकी शुरुआत की थी. प्रत्येक वर्ष एक नए उद्देश्य के साथ विश्व साक्षरता दिवस मनाया जाता है. इस साल की थीम है ‘इच वन टीच वन’.
भारत में शिक्षा
सरकार द्वारा साक्षरता को बढ़ाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान, मिड डे मील योजना, प्रौढ़ शिक्षा योजना, राजीव गांधी साक्षरता मिशन आदि न जाने कितने अभियान चलाए गए, मगर सफलता आशा के अनुरूप नहीं मिली. इनमें से मिड डे मील ही एक ऐसी योजना है जिसने देश में साक्षरता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई लेकिन सरकार की यह भी योजना आजकल विवादों में घिरी हुई है. कई ऐसे मामले आए हैं जहां पर भोजन के नाम पर बच्चों को जहर परोसा जा रहा है.
इसके अलावा देश में 1998 में 15 से 35 आयु वर्ग के लोगों के लिए ‘राष्ट्रीय साक्षरता मिशन’ और 2001 में ‘सर्व शिक्षा अभियान’ शुरू किया गया. इसके अलावा संसद ने चार अगस्त, 2009 को बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कानून को स्वीकृति दे दी. एक अप्रैल, 2010 से लागू हुए इस कानून के तहत छः से 14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को निःशुल्क शिक्षा देना हर राज्य की जिम्मेदारी होगी और हर बच्चे का मूल अधिकार होगा. इस कानून को साक्षरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है.
दक्षिण एशिया में शिक्षा
दक्षिण एशिया जिसमें भारत भी शामिल है अभी भी शिक्षा को लेकर अनेक चुनौतियां और सवाल मौजूद हैं. विकसित देशों में जहां उच्च शिक्षा पाने वाली उम्र के 47 प्रतिशत से अधिक छात्रों को उच्च शिक्षा की सुविधा उपलब्ध है वहीं दक्षिण एशिया में यह मात्र बड़ी मुशिकल से 7 प्रतिशत से भी कम है.
यूं तो साक्षरता दिवस के लिए मात्र एक दिन देकर हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ सकते लेकिन इस एक दिन फैलाई गई जागरुकता की लहर आने वाले सालों में साक्षरता के क्षेत्र में एक बड़ा बदलाव ला सकती है.
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