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यही है हर दिल का इरादा,
रुके हिंसा, तबाही और खून खराबा,
हर तरफ फैले भाईचारा…
शांति किसे प्यारी नहीं होती? शांति की ही खोज में मनुष्य अपना जीवन न्यौछावर कर देता है. लेकिन अफसोस आज इंसान दिन ब दिन इस शांति से दूर जाता जा रहा है. आज चारों तरफ फैले बाजारवाद ने शांति को हमसे और भी दूर कर दिया है.
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आज पृथ्वी, आकाश व सागर सभी अशांत हैं. स्वार्थ और घृणा ने मानव समाज को विखंडित कर दिया है. यूं तो विश्व शांति का संदेश हर युग और हर दौर में दिया गया है. लेकिन इसको अमल में लाने वालों की संख्या बेहद कम रही है.
विश्व और शांति: आज का परिवेश [WORLD PEACE DAY]
आज कई लोगों का मानना है कि विश्व शांति को सबसे बड़ा खतरा साम्राज्यवादी आर्थिक और राजनीतिक चाल से है. विकसित देश अमेरिका के नेतृत्व में युद्ध की स्थिति उत्पन्न करते हैं ताकि उनके सैन्य साजो-समान बिक सकें. यह एक ऐसा कड़वा सच है जिससे कोई इंकार नहीं कर सकता. आज सैन्य साजो-सामान उद्योग विश्व में बड़े उद्योग के तौर पर उभरा है. आतंकवाद को अलग-अलग स्तर पर फैला कर विकसित देश इससे निपटने के हथियार बेचते हैं और इसके जरिये अकूत संपत्ति जमा कर रहे हैं.
हाल ही में अफगानिस्तान, इरान और इराक जैसे देशों में हुए युद्धों को विशेषज्ञ हथियार माफियाओं के लिए एक फायदे का मेला मानते हैं. उनके अनुसार दुनिया में भय और आतंक का माहौल खड़ा कर के ही सैन्य सामान बेचने वाले देश अपनी चांदी कर रहे हैं.
बंदूक की नोंक पर शांति
तानाशाही और पराधीनता के माहौल में लोग भयभीत होकर बाहरी तौर पर शांत नजर आ सकते हैं लेकिन उनके मन में भारी उथल-पुथल मची है. तिब्बत और जिनझियांग सहित दुनिया के बहुत से इलाके आज भी बंदूक से थोपी गई शांति के दैत्याकार साये में रहने को मजबूर हैं. उन्हें कब तक अपने बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जाएगा?
About World Peace: विश्व शांति के विषय में
रक्षा विशेषज्ञों और जानकारों का मानना है कि जब तक अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश अत्याधुनिक हथियारों व लड़ाकू विमानों का काला कारोबार करते रहेंगे, विकासशील देशों को अपनी नव-उपनिवेशवादी नीतियों का शिकार बनाते रहेंगे और बहुराष्ट्रीय कंपनियां गरीब देशों के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों का दोहन कर पर्यावरण को दूषित करती रहेंगी, तब तक संघर्ष के खात्मे की कल्पना करना बेमानी होगा. और साफ सी बात है जब तक संघर्ष खत्म नहीं होगा शांति बहाली नहीं हो सकती.
हमें यह समझना होगा कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है. मानव कल्याण की सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है. भाषा, संस्कृति, पहनावे भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, लेकिन विश्व के कल्याण का मार्ग एक ही है. मनुष्य को नफरत का मार्ग छोड़कर प्रेम के मार्ग पर चलना चाहिए.
शांति के महत्व को स्वीकार करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने 1981 में एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें कहा गया कि हर 21 सितंबर को विश्व शांति दिवस मनाया जाएगा. अगले अंक में हम विश्व शांति दिवस के विषय में जानेंगे.
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