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World Radio Day in Hindi – रेडियो की उन यादों को भूल ना जाना

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पुरानी यादें हमारे जहन में बेहद लंबे समय तक रहती हैं. कुछ ऐसी ही यादें हमारे साथ रेडियो के साथ भी जुड़ी हैं. रेडियो कभी हमारे पास मनोरंजन का एकमात्र साधन हुआ करता था. लेकिन समय के साथ और तकनीक के बढ़ते प्रसार ने सूचना के इस हथियार को जैसे आउटडेटेड कर दिया है. लेकिन रेडियो का इतिहास बेहद बेहतरीन और रोचक रहा है जिसे भुला पाना आसान नहीं है.


Radio in India: रेडियो का समय

जिस समय दुनिया में रेडियो आया उस समय सूचना और मनोरंजन के कोई खास साधन नहीं थे. ऐसे में रेडियो ने एक क्रांति पैदा की और देखते ही देखते इसने दुनियाभर में अपने पांव पसार दिए. भारत में तो रेडियो का इतिहास और भी स्वर्णिम रहा है. रेडियो ने आम भारतीय को भी खास बनाने में अहम भूमिका निभाई है. आज से कई साल पहले जब टीवी का प्रचार अधिक नहीं था तब दूर दराज के क्षेत्रवासियों को मुख्य धारा की खबरें दे उन्हें एक धारा में चलाने का काम रेडियो ने ही किया था और कल ही क्यूं आज भी रेडियो देश और दुनिया के कई क्षेत्रों में सूचना और प्रसार का एकमात्र साधन है.


रेडियो जनसंचार का महत्वपूर्ण यंत्र है और राष्ट्र के विकास में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. राष्ट्र के कम पढ़े-लिखे लोगों को इस माध्यम से बडे ही सरल ढंग से आम बोल-चाल की भाषा में विभिन्न प्रकार की शिक्षा दी जाती रही है और आगे भी इसके रचनात्मक प्रयोगों पर शोध चल रही है.


रेडियो एक ऐसी सेवा है जिसके जरिए न केवल रेडियो फ्रीक्वेंसी से बात की जाती है, बल्कि आपदा के समय जब संचार के माध्यम ठप हो जाएं तो प्रभावितों की मदद भी की जा सकती है.


World Radio Day- विश्व रेडियो दिवस

रेडियो के इसी शानदार इतिहास को याद करने और दुनिया में रेडियो के खोते स्वाभिमान को दुबारा जगाने के लिए ही यूनेस्को ने साल 2011 में प्रत्येक वर्ष 13 फरवरी को विश्व रेडियो दिवस मनाने का निर्णय लिया. यूनेस्को का भी मानना है कि रेडियो ही एक ऐसा जनमाध्यम है जिसके द्वारा संदेश असंख्य लोगों तक पहुंचाया जाता है विशेषकर कि समाज के कमजोर तबके के लोगों तक.


Radio- क्या है रेडियो

रेडियो की उत्पत्ति लैटिन शब्द ‘रेडियस’ से हुई है, जिसका मतलब यानि अर्थ ‘रे’ है. इस शब्द को 20वीं शताब्दी में अन्य वायरलेस तकनीक से रेडियो को अलग करने के लिए उपयोग में लाया गया.


आज सबको पसंद है रेडियो

कभी बुजुर्गो और पुराने जमाने के लोगों की पसंद माने जाने वाला रेडियो अब युवा दिलों की धड़कन बन चुका है. सूचना और मनोरंजन के इस युग में एक बहुत बड़ा वर्ग रेडियो के साथ जुड़ चुका है. खासकर मोबाइल और इंटरनेट पर रेडियो को युवा बड़े चाव से सुनते हैं. विविध भारती का रेनबो चैनल और एफएम के प्रसारण आज भी जनता के बीच लोकप्रिय हैं. आज रेडियो पर व्यापक पैमाने पर बाजार का प्रभाव देखा जाता है. कई प्राइवेट रेडियो स्टेशन भी आज जनता के बीच बेहद चाव से चुने जाते हैं लेकिन ऐसे स्टेशन और चैनल मात्र मनोरंजन का ही साधन होते हैं. आकाशवाणी और विविध भारती के चैनलों को ही जनता सही पैमाने पर ज्ञान और सूचना का साधन मानती है.


History of Radio- रेडियो की खोज

दुनिया में रेडियो प्रसारण का इतिहास काफी पुराना नहीं है. कनाडा के वैज्ञानिक रेगिनाल्ड फेंसडेन ने 24 दिसम्बर, 1906 को रेडियो प्रसारण की शुरुआत की थी.


1918 में ली द फोरेस्ट ने न्यूयॉर्क के हाईब्रिज इलाके में दुनिया का पहला रेडियो स्टेशन शुरू किया था लेकिन पुलिस ने इसे अवैध करार दे इसे बंद कर दिया था. अगर भारत की बात करें तो वर्ष 1936 में भारत में सरकारी ‘इम्पीरियल रेडियो ऑफ इंडिया’ की शुरुआत हुई जो आज़ादी के बाद ऑल इंडिया रेडियो या आकाशवाणी बन गया. आज आकाशवाणी के 231 केन्द्र तथा 373 ट्रांसमीटर हैं तथा इसकी पहुंच 99 प्रतिशत लोगों तक है. भारत जैसे बहु संस्कृति, बहुभाषी देश में आकाशवाणी से कई भाषाओं में इसकी घरेलू सेवा में प्रसारण होता है. रेडियो के विस्तार में भारतीय वैज्ञानिक डॉ. जगदीश चन्द्र बसु का योगदान भी अहम रहा है.


आज भारत में रेडियो ने अपनी पहुंच बढ़ाई है और यह बेहद शानदार स्तर पर है. जहां एक तरफ सरकारी रेडियो स्टेशनों द्वारा जनता तक ज्ञान का भंडार पहुंचाया जाता है वहीं प्राइवेट रेडियो स्टेशन भी भारत में मनोरंजन को एक अन्य स्तर तक ले जा रहे हैं. हालांकि आज भी गैरसरकारी रेडियो (यानि प्राइवेट चैनलों पर) में समाचार या समसामयिक विषयों की चर्चा पर पाबंदी है.


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