- 1020 Posts
- 2122 Comments
साल 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष के रूप में घोषणा करके प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने एक तरह से भारत के पहले गणितज्ञ और खगोलशास्त्री आर्यभट्ट को सम्मान दिया है. दुनिया को शून्य की समझ देने वाले आर्यभट्ट की ही देन है कि सैकड़ों सालों तक भारत ने दुनिया का गणित के क्षेत्र में नेतृत्व किया. आज खगोलविज्ञान में दुनिया ने जितनी भी उपलब्धियां हासिल की हैं उसमें आर्यभट्ट का योगदान सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है. उन्हीं की देन है कि आज खगोलविज्ञान नए-नए शोध कर रहा है.
आर्यभट्ट का जीवन
आर्यभट्ट के जन्मकाल को लेकर जानकारी उनके ग्रंथ आर्यभट्टीयम से मिलती है. इसी ग्रंथ में उन्होंने कहा है कि “कलियुग के 3600 वर्ष बीत चुके हैं और मेरी आयु 23 साल की है, जबकि मैं यह ग्रंथ लिख रहा हूं.” भारतीय ज्योतिष की परंपरा के अनुसार कलियुग का आरंभ ईसा पूर्व 3101 में हुआ था. इस हिसाब से 499 ईस्वी में आर्यभट्टीयम की रचना हुई. इस लिहाज से आर्यभट्ट का जन्म 476 ईस्वी में हुआ माना जाता है. लेकिन उनके जन्मस्थान के बारे में मतभेद है. कुछ विद्वानों का कहना है कि इनका जन्म नर्मदा और गोदावरी के बीच के किसी स्थान पर हुआ था, जिसे संस्कृत साहित्य में अश्मक देश के नाम से लिखा गया है। अश्मक की पहचान एक ओर जहाँ कौटिल्य के “अर्थशास्त्र” के विवेचक आधुनिक महाराष्ट्र के रूप मे करते हैं, वहीं प्राचीन बौद्ध स्रोतों के अनुसार अश्मक अथवा अस्सक दक्षिणापथ (Daccan) में स्थित था. कुछ अन्य स्रोतों से इस देश को सुदूर उत्तर में माना जाता है, क्योंकि अश्मक ने ग्रीक आक्रमणकारी सिकन्दर (Alexander, 4 BC) से युद्ध किया था.
जब गणित का तेज विद्यार्थी दुनिया का महान क्रिकेटर बना
आर्यभट्ट की शिक्षा
माना जाता है कि आर्यभट्ट की उच्च शिक्षा कुसुमपुर में हुई और कुछ समय के लिए वह वहां रहे भी थे. हिंदू तथा बौद्ध परंपरा के साथ-साथ भास्करने कुसुमपुर को पाटलीपुत्र बताया जो वर्तमान पटनाके रूप में जाना जाता है. यहाँ पर अध्ययन का एक महान केन्द्र, नालन्दा विश्वविद्यालय स्थापित था और संभव है कि आर्यभट्ट इसके खगोल वेधशाला के कुलपति रहे हों. ऐसे प्रमाण हैं कि आर्यभट्ट-सिद्धान्त में उन्होंने ढेरों खगोलीय उपकरणों का वर्णन किया है.
आर्यभट्ट के कार्य
आर्यभट्ट गणित और खगोल विज्ञान पर अनेक ग्रंथों के लेखक हैं, जिनमें से कुछ खो गए हैं. उनकी प्रमुख कृति, आर्यभट्टीयम, गणित और खगोल विज्ञान का एक संग्रह है, जिसे भारतीय गणितीय साहित्य में बड़े पैमाने पर उद्धृत किया गया है, और जो आधुनिक समय में भी अस्तित्व में है. आर्यभट्टीयम के गणितीय भाग में अंकगणित, बीजगणित, सरल त्रिकोणमिति और गोलीय त्रिकोणमिति शामिल हैं. इसमें निरंतर भिन्न (कॅंटीन्यूड फ़्रेक्शन्स), द्विघात समीकरण(क्वड्रेटिक इक्वेशंस), घात श्रृंखला के योग(सम्स ऑफ पावर सीरीज़) और जीवाओं की एक तालिका(टेबल ऑफ साइंस) शामिल हैं.
एक औरत जिसने कंप्यूटर को भी फेल कर दिया
आर्यभट की रचना
आर्यभट के लिखे तीन ग्रंथों की जानकारी आज भी उपलब्ध है. दशगीतिका, आर्यभट्टीयम और तंत्र लेकिन जानकारों की मानें तो उन्होंने और एक ग्रंथ लिखा था- ‘आर्यभट्ट सिद्धांत‘. इस समय उसके केवल 34 श्लोक ही मौजूद हैं. उनके इस ग्रंथ का सातवें दशक में व्यापक उपयोग होता था. लेकिन इतना उपयोगी ग्रंथ लुप्त कैसे हो गया इस विषय में कोई निश्चित जानकारी नहीं मिलती.
आर्यभट्ट ने गणित और खगोलशास्त्र में और भी बहुत से कार्य किए. अपने द्वारा किए गए कार्यों से इन्होंने कई बड़े-बड़े वैज्ञानिकों को नए रास्ते दिए. भारत में इनके नाम पर कई संस्थान खोले गए हैं जिसमें कई तरह के शोध कार्य किए जाते हैं.
Read more:
वर्ष 2012 राष्ट्रीय मैथमेटिकल ईयर
गणित में फिसड्डी क्यों हैं हमारे छात्र
Read Comments