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भारतीय राजनीति में लौह-महिला का तमगा इंदिरा गांधी को प्राप्त है लेकिन उनके बाद राजनीति की दुनिया में काफी लंबे समय तक एक ऐसी महिला की कमी देखने को मिली जिनके हौसलों में लोहे सी मजबूती हो लेकिन इस खालीपन को भरा है ममता बनर्जी ने. ममता बनर्जी के नाम को मात्र एक बार देखकर उनका आंकलन करने वाले अकसर धोखा खा जाते हैं. जिस स्त्री को वह शबनम की तरह कोमल और मासूम मान बैठते हैं दरअसल वह भारतीय राजनीति की शोला हैं जिनसे बड़े-बड़े दिग्गज घबराते हैं.
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ममता बनर्जी का व्यक्तित्व
ममता बनर्जी एक बेहद असाधारण व्यक्तित्व की महिला हैं. निम्न-मध्यम परिवार से संबंधित होने के कारण वह सीधा-सादा जीवन व्यतीत करने में ही विश्वास रखती हैं. सूती साड़ी और बस्ता ममता बनर्जी की पहचान बन गए हैं. ममता बनर्जी एक अविवाहित और सफल महिला हैं. उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली और विशाल है. वह संजीदा मुद्दों को गंभीरता से हल करने में विश्वास रखती हैं. पं. बगाल जैसे महत्वपूर्ण राज्य की मुख्यमंत्री होने के बावजूद उन्होंने अपने मूल्यों से समझौता नहीं किया है. ‘मां-माटी-मानुष‘ को नारा बनाकर बंगाल की सत्ता तक पहुंचने वाली ममता बनर्जी का नाम आज किसी ब्रांड से कम नहीं है.
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नाम ही नहीं काम पर भी जाइए जनाब
अकसर लोग कहते हैं कि ममता नाम होने से कोई ममता की मूरत नहीं हो जाता और यह कथन ममता बनर्जी के सापेक्ष में सही साबित होता है. कभी जयप्रकाश नारायण की कार के बोनट पर कूद कर अपना रोष प्रकट करना अवश्य ही किसी को पागलपन लगेगा लेकिन शायद इसे ही जुनून कहते हैं. अपने और अपने राज्य के हक के लिए एक रेलमंत्री पर भरी संसद में शाल फेंक देना बेशक थोड़ा अटपटा हो लेकिन अपना विरोध खुले में सबके सामने जाहिर करने का माद्दा हर किसी में नहीं होता. 1996 में ममता बनर्जी ने अलीपुर में एक रैली के दौरान अपने गले में काली शाल से फांसी लगाने की धमकी भी दी थी. कई लोगों ने इसे पागलपन समझा लेकिन यह पागलपन कर पाना भी आज के जेड सुरक्षा प्राप्त करने वाले नेताओं के बस में नहीं. ममता बनर्जी के जीवन पर अगर नजर डालें तो ऐसे कई वाकये निकलकर सामने आएंगे जब अपनी आवाज उठाने के लिए उन्होंने बेहद निराले और अलग रास्ते अपनाए.
ममता बनर्जी की उपलब्धियां
ममता बनर्जी की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि उन्होंने बंगाल की राजनीति में कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के लगभग 34 वर्ष लंबे शासनकाल को समाप्त करते हुए मुख्यमंत्री के पद पर कब्जा किया. इसके अलावा वह पश्चिम बंगाल की पहली महिला मुख्यमंत्री भी हैं. रेल मंत्री रहते हुए उन्होंने कई नई ट्रेनों के आवागमन और पुरानी ट्रेनों की आवृत्ति बढ़ाने जैसे महत्वपूर्ण निर्णय लिए.
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लेकिन ममता को बंगाल के अलावा कुछ नहीं दिखता
ममता बनर्जी देश खासतौर पर बंगाल के विकास और प्रगति के लिए इतनी प्रतिबद्ध हैं कि अगर बजट या किसी सरकारी योजना में बंगाल को महत्व नहीं दिया जाता तो वह इस पर भड़क जाती हैं और अपने क्रोध पर काबू नहीं रख पातीं. ममता बनर्जी अपने नाम के अनुसार ममतामयी तो हैं लेकिन उन्हें बंगाल के आगे कुछ और नजर नहीं आता है. उनका यह अंदाज बहुत कुछ मोदी से मिलता है जिन्हें गुजरात के अलावा कुछ नजर नहीं आता.
बंगाल का अत्यधिक समर्थन करना जहां बंगाल के लोगों के लिए अच्छा है वहीं ममता बनर्जी के राजनीतिक कॅरियर के लिए खराब भी है. ममता बनर्जी गरीबों के लिए तो मसीहा हैं लेकिन अमीरों और पूंजीपतियों के लिए उनकी विचारधारा बहुत पुरानी या यूंकहें दकियानूसी है. रेल किरायों में मामूली-सी बढ़त पर चिढ़ जाना और रातों रात देश के रेलमंत्री को बदल देना उनके चिड़चिड़ेपन को दर्शाता है.
ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री पद
इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर ममता बनर्जी अपनी सोच को थोड़ा और ऊपर उठाएं तो वह एक राष्ट्रीय स्तर की नेता हो सकती हैं और आने वाले समय में देश को एक सशक्त “प्रधानमंत्री” मिल सकता है. हालांकि ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री पद का आज के समय में आपस में कोई मेल देख पाना असंभव ही लग रहा है पर यह राजनीति है जहां एक चाल पूरा खेल बदल देती है.
लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि ममता बनर्जी देश ही नहीं दुनिया की भी प्रभावशाली महिला हैं. ऐसी शख्सियत का देश में होना इस बात की गवाही देता है कि भारत में महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. ऐसी शख्सियतें ही हमारी राजनीति को बेहद दिलचस्प बनाती हैं.
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