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NATIONAL ARMY DAY : तो इसलिए कम हुए हैं “देशभक्त”

Special Days
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सशस्त्र सेना बल किसी भी देश की रक्षा के लिए बेहद अहम भूमिका निभाते हैं. हर देश में सैनिक बनना हर नागरिक के लिए एक सपना होता है लेकिन भारत में इस सपने से युवा दूर ही भागते हैं. युवाओं की बेरुखी की वजह से आज देश में सैन्य अफसरों की बेहद कमी है. लेकिन इसके लिए युवाओं को गलत ठहराना बिलकुल गलत होगा. आज भारतीय सेना दिवस के दिन यह चर्चा बेहद प्रासंगिक है आखिर कौन से ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से देशभक्तों की कमी नजर आ रही है?


देश में सेना के प्रति रवैया

इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में सशस्त्र बलों को लेकर प्रशंसा भाव है. सशस्त्र बलों को ऐसी संस्था माना जाता है, जिनका गैर राजनीतिक और पंथनिरपेक्ष चरित्र है और जो असैन्य नेतृत्व के तहत लोकतांत्रिक तरीके से काम करते हैं.  इनके पेशेवर रुख पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते.  पांच लड़ाइयों, अनेक बार विदेश में शांति सेनाओं और विपत्ति के समय देश में असैन्य और राहत कार्यों में योगदान की कसौटी पर भारतीय सेना खरी उतरी है.


NATIONAL ARMY DAY ESSAY IN HINDI : समस्या

लेकिन यह एक समस्या है कि देश में बेरोजगारों की फौज होने के बावजूद सुरक्षा बलों को सैनिकों और अधिकारियों की कमी का सामना करना पड़ रहा है.  यह सर्वविदित है कि सेना में अधिकारियों और सैनिकों को पर्याप्त वेतनमान और सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं.


असैन्य सेवाओं की तरह सेना में अधिकांश लोग 60 साल की उम्र तक काम नहीं कर सकते.  उन्हें बर्फ से ढके पहाड़ों, बियाबान जंगल और रेगिस्तान जैसी विषम परिस्थितियों में अपने परिवार से अलग रहकर काम करना पड़ता है.  परिवार के लिए आवास और बच्चों की शिक्षा के संबंध में वह पूरी तरह से संतुष्ट नहीं हैं.  राजनेता और सरकारें पिछले साठ साल से सैनिकों को वायदों का झुनझुना पकड़ा रही है.  उनकी समस्याएं सुलझाने के लिए अन्य लोकतांत्रिक देशों की तरह सारगर्भित कदम नहीं उठाए जा रहे हैं.  अमेरिका में ब्ल्यू रिबन तथा इंग्लैंड में रॉयल कमीशन नियमित अंतराल पर

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