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कहते हैं आदमी की कद्र अक्सर उस समय अधिक होती है जब वह दुनिया को आकस्मिक छोड़ कर चला जाता है. तब उसकी खूबियों और विशेषताओं का बारीकी से अध्ययन किया जाने लगता है. कुछ ऐसा ही महान फिल्मकार गुरुदत्त के साथ भी हुआ. प्यासा, कागज़ के फूल और साहब बीवी और गुलाम जैसी क्लासिक फिल्में देने वाले फिल्मकार गुरु दत्त की 9 जुलाई को 88वीं जयंती है.
गुरु दत्त का जीवन
कर्नाटक के दक्षिण कनारा जिले में वर्ष 1925 में जन्में गुरु दत्त का पूरा नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था. बचपन में आर्थिक दिक्कतों और पारिवारिक परेशानियों के कारण गुरुदत्त मुश्किल से तालीम हासिल कर पाए. शुरुआत में उन्होंने कोलकाता में एक टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी की, हालांकि बाद में वह यह नौकरी छोड़कर अपने माता-पिता के पास मुंबई लौट आए. अपने चाचा की मदद से उन्होंने पुणे स्थित प्रभात फिल्म कंपनी में तीन साल के अनुबंध पर नौकरी हासिल की. यहीं से वह कुछ फिल्मी हस्तियों के संपर्क में आए. उनकी देव आनंद से पहली मुलाकात यहीं हुई. बाद में वह फिर मुंबई लौटे और फिल्म निर्माण एवं अभिनय की शुरुआत की. गुरुदत्त ने बतौर निर्देशक पहली फिल्म वर्ष 1951 में ‘बाजी’ बनाई. इस फिल्म में देवानंद मुख्य भूमिका में थे. इसके बाद फिर उन्होंने देव आनंद के साथ ‘जाल’ फिल्म बनाई.
एक बेहतरीन फिल्मकार
शायद उन्हें स्वयं ही पता नहीं था कि वह कितने बड़े फिल्मकार हैं. उनकी संवेदनशीलता उनकी फिल्मों से साफ झलकती थी. हिंदी सिनेमा में गुरु दत्त का मुकाम सबसे अलहदा है, जिन्हें पूरी दुनिया आज भी याद करती है. वह एक ऐसे ठहरे हुए इंसान और सुलझे हुए फिल्मकार थे, जो कामयाबी पर इतराते नहीं थे और नाकामी से घबराते नहीं थे.
गुरुदत्त की अभिनेत्री वहीदा रहमान के साथ जोड़ी काफी चर्चित रही. फिल्म ‘कागज के फूल’ की असफल प्रेम कथा उन दोनों के स्वयं के जीवन पर आधारित थी. दोनों कलाकारों ने फिल्म ‘चौदहवीं का चांद’ और ‘साहब बीबी और गुलाम’ में साथ-साथ काम किया, जो बहुत ही सफल हुई. काम में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण गुरुदत्त दांपत्य जीवन के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं दे पाते थे, जिसके कारण उनके वैवाहिक जीवन में तूफान खड़ा हो गया. गुरु दत्त और उनकी पत्नी गीता दत्त के बीच के तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई.
इस समय तक गुरुदत्त के जीवन में दो स्त्रियों ने प्रवेश कर लिया था एक उनकी पत्नी गीता दत्त और दूसरी वहीदा रहमान. गुरुदत्त दोनों से बेहद प्रेम करते थे और दोनों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका. जिसकी वजह से वह हर समय परेशान रहा करते थे, किसी से बातें भी नहीं करते यहां तक की अपने परिवार वालों से भी अपनी समस्या के बारे में खुल कर नहीं कहते थे. उनके चेहरे पर उदासी उन्हें दूसरों को सवाल करने के लिए विवश करती थी. गुरुदत्त का 10 अक्टूबर, 1964 को निधन हो गया, उस समय उनकी उम्र महज 39 साल थी.
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