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विश्व पटल पर भारत को एक ऐसे राष्ट्र का दर्जा प्राप्त है जिसमें अनेक प्रकार की धार्मिक और सामाजिक भिन्नता होने के बावजूद आपसी सौहार्द की भावना की कोई कमी नहीं है. लेकिन अगर हम ऐतिहासिक भारत पर नजर डालें तो पहले और आज की परिस्थितियों में अत्याधिक भिन्नता दिखाई देती है. आज हमें अपने धर्म पालन करने का पूरा अधिकार है लेकिन पहले यह अधिकार जंग के द्वारा ही छीने जा सकते थे. भारत पर अनेक धर्म के लोगों ने आक्रमण किया परंतु जब भी धर्म के नाम पर अपनी जान न्यौछावर करने वाले वीरों की बात उठती है तो उसमें सिखों का नाम सबसे सम्मानजनक स्थान पर रखा जाता है. इन्हीं वीरों में साहस से परिपूर्ण सिख धर्म के पांचवें गुरु अर्जुनदेव जी का भी नाम प्रमुखता से लिया जाता है.
गुरु अर्जुनदेव जी का जीवन
गुरु अर्जुन देव जी यह बहुत अच्छी तरह समझते थे कि गुरु नानक देव जी के संदेश हर सामाजिक परिस्थितियों और जीवन के हर क्षेत्र में बहुत उपयोगी हैं इसीलिए अन्य धर्म के गुरुओं की तरह उन्होंने भी गुरु नानक देव के उपदेशों को प्रचारित करना ही अपना उद्देश्य समझा. गुरु अर्जुन देव जी का जन्म गोविंदल (पंजाब) में गुरु रामदास के घर हुआ. वह गुरु रामदास के सबसे छोटे बेटे थे. अपने पिता और चौथे सिख गुरु रामदास के निधन के पश्चात गुरु अर्जुन देव जी पांचवें गुरु बनाए गए. पिता के अधूरे रह गए प्रयासों को पूरा करते हुए उन्होंने अमृतसर (पंजाब) में हरमंदिर साहिब की स्थापना कर इस स्थान को सिखों के पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में पहचान दिलवाई. गुरु अर्जुनदेव जी ने अपने अनुयायियों के जीवन को आर्थिक और नैतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए भी कई कार्य किए.
गुरु अर्जुन देव जी की रचनाएं
गुरु अर्जुन देव जी ने वर्ष 1606 में भाई गुरदास जी की सहायता से गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया. रागों के आधार पर उन्होंने ग्रंथ साहिब में संकलित वाणियों को जिस प्रकार वर्गीकृत किया है, वह अद्वितीय है. गुरु अर्जुन देव जी ने सुखमणी साहिब की रचना की, जिसे पढ़कर आत्मिक शांति की अनुभूति होती है. इसमें साधना, नाम-सुमिरन तथा उसके प्रभावों, सेवा और त्याग, मानसिक दुख-सुख एवं मुक्ति की उन अवस्थाओं का उल्लेख किया गया है. गुरु अर्जुन देव जी ने 30 बड़े रागों में लगभग 2,218 आध्यात्मिक भजनों की रचना की है.
गुरु अर्जुन देव जी की शहादत
तत्कालीन मुगल सम्राट अकबर के देहांत के बाद उनका पुत्र जहांगीर दिल्ली का शासक बना. वह एक कट्टर पंथी राजा था. उसे अपने धर्म के अलावा ना तो किसी धर्म में दिलचस्पी थी और ना ही वह उन्हें पसंद करता था. गद्दी पर बैठते ही वह गैर मुसलमानों को मुसलिम धर्म ग्रहण करने के लिए बाध्य करने लगा. लेकिन अर्जुनदेव जी ने उसकी बात नहीं मानी, कुछ इतिहासकारों का यह भी मत है कि शहजादा खुसरो को शरण देने के कारण जहांगीर गुरु अर्जुन देव जी से नाराज था. बादशाह जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव जी को परिवार सहित पकडने का हुक्म जारी कर दिया और उन्हें अनेक यातनाएं दी. अनेक कष्टों को झेलेते हुए गुरु अर्जुन देव जी ने शहादत प्राप्त की.
आध्यात्म के क्षेत्र में ब्रह्मज्ञानी गुरु अर्जुन देव जी को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है. उनकी सभी रचनाएं मानवता का संदेश देती हैं. वह बेहद शांत और गंभीर स्वभाव के व्यक्ति थे. सर्वमान्य लोकनायक गुरु अर्जुनदेव जी दिन-रात अपनी संगत की सेवा में लगे रहते थे. उनके मन में सभी धर्मो के प्रति बेहद स्नेह और सम्मान था.
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