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किसी भी सभ्य समाज के लिए न्याय बेहद अहम होता है. न्याय समाज को कई बुराईयों और गैर-सामाजिक तत्वों से दूर रखने के साथ लोगों के नैतिक और मानवाधिकारों की रक्षा भी करता है. समाज में फैली असमानता और भेदभाव से समाजिक न्याय की मांग और तेज हो जाती है. सामाजिक न्याय के बारें में कार्य और उस पर विचार तो बहुत पहले से शुरु हो गया था लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी विश्व के कई लोगों के लिए सामाजिक न्याय सपना बना हुआ है.
समाज में फैली भेदभाव और असमानता की वजह से कई अबर हालात इतने बुरे हो जाते है कि मानवाधिकारों का हनन भी होने लगता है. इसी तथ्य को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र ने 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रुप में मनाने का निर्णय लिया है. सन 2009 से इस दिवस को पूरे विश्व में सामाजिक न्याय को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों द्वारा मनाया जाता है. हालांकि 20 फरवरी को विश्व सामाजिक न्याय दिवस के रुप में मनाने का फैसला 2009 में ही हो गया था पर इसका मूल क्रियानिवन 2009 से शुरु किया गया.
अगर हम भारत के साक्षेप में बात करें तो आज भी आम आदमी अपनी कई मूल जरुरतों के लिए न्याय प्रकिया को नहीं जानता जिसके आभाव में कई बार उसके मानवाधिकारों का हनन होता है और उसे अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है. आज भारत में गरीबी, महंगाई और आर्थिक असमानता हद से ज्यादा है. भेदभाव भी अपनी सीमा के चरम पर है. ऐसे में सामाजिक न्याय बेहद विचारणीय विषय है.
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