Posted On: 16 Sep, 2013 Others में
सोंपा था चमन जिसे माना था बागबां
इंसानियत की कॉम का समझा था रहनुमां
कुछ पग चला था साथ में
फिर थमा के मेरे हाथ में
खून से सना हुआ खंजर गुजर गया
नजरो के सामने से
कैसा ये मंजर गुजर गया
धर्मान्धता का जूनून था
आँखों में भरा खून था
कल जलाया था उसका मकाँ
आज जल रहा था मेरा आशियाँ
देख ये तमाशा वो
घर से गुजर गया
नजरो के सामने से
कैसा ये मंजर गुजर गया
इन दंगों से बता
हासिल ही क्या हुआ
लख्ते जिगर गया तेरा तो
मेरा भी पुत्र कटा
बुझते चिराग घर के देख
वो जुबाँ से मुकर गया
नजरो के सामने से
कैसा ये मंजर गुजर गया
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