Posted On: 21 Oct, 2013 Others में
आम तौर पैर यह देखा गया है की इलेक्शन से पहले कई प्रकार के सर्वेक्षण होते रहते हैं जो मीडिया चैनलों के अपने अपने निजी झुकाव के अनुसार राजनितिक पार्टी के जीतने की भविष्यवाणी करते हैं इन सर्वेक्षणों का विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि ये सर्वे में मात्र कुछ इलाकों के बुद्धिजीवी वर्ग को शामिल करते हैं और भारत की राजनीती के इतिहास में बुद्धिजीवी वर्ग का योगदान सबसे कम रहता है वैसे भी जो मीडिया टी आर पी की भूख की खातिर एक बाबा के सपने को भी इतनी बार प्रसारित करता है की सरकार तक को वह बात सच मानकर खुदाई का आदेश देना पड़ता है सपनो को तवज्जो देने वाले इस मीडिया पर भरोसा करना कितना तर्कसंगत और प्रासंगिक है अब तो विभिन्न चैनलों में आने वाले ये सर्वेक्षण जनता के लिए मनोरंजन का प्रोग्राम बनकर रह गए हैं
कुछ लोगों का मानना है की इन भ्रामक प्रचारों में पड़कर जनता उलझती है परन्तु ऐसा नहीं है लोकतंत्र में आपका वोट आपकी इच्छा के अनुसार पड़ना है इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की वह पार्टी जीतती है या नहीं जनता इन दुष्प्रचारों को मनोरंजन की भांति देखती है और स्वयं में मंथन करती है वैसे भी जो पार्टी जीत रही है उसे पड़ने या न पड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता आपको तो बस अपने वोट का प्रयोग करना है और अब तो सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद तो जनता के पास इनमे इ कोई नहीं का विकल्प भी आ गया है जिसको प्रयोग में लाना जनता भली भांति समझती है
अब मैं बात करूँगा उस वर्ग की जो भारत की राजनीती में सबसे ज्यादा प्रभाव डालते हैं वास्तविकता में तो सर्वे में दिखाया जाने वाला बुद्धिजीवी वर्ग या तो वोट डालने नहीं जाता या अपनी विद्वता के मंथन के आधार पर सही पार्टियों में बंट जाता है सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाला निम्न तथा अन्पड वर्ग आज भी धर्म गुरुओं के कहे अनुसार किसी एक पार्टी को वोट दल कर अपने लोकतंत्र के अधिकार की इतिश्री कर देता है या दूसरा बड़ा वर्ग आज भी चन्द बोतलों की या चन्द रुपयों की खातिर किसी एक पार्टी को वोट डालता है हमारे मुल्क में यही वर्ग है जो अपने मताधिकार का सबसे ज्यादा प्रयोग करता है तथा इलेक्शन को आज भी आमदनी तथा मधुशाला जाने का उचित साधन समझता है आज भी इस मुल्क में वोटिंग धर्म ,जाति, क्षेत्र व परिवारवाद के आधार पर होती है
आज जब हमारे देश में सभी को विहारों की अभिव्यक्ति का अधिकार है तो इन सर्वेक्षणों पर प्रतिबन्ध लगाने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता बल्कि यह प्रोग्राम जनता एक मनोरंजक राजनितिक सीरियल की भांति अपनी जगह बना रहे हैं और इनसे राजनीती के प्रति ज्ञानवर्धन भी होता है अंत में भारत में होने वाले इलेक्शन की कटु सत्यता को दिखलाती हुई अपनी चन्द पंक्तियों के साथ इस चर्चा को समाप्त करना चाहूँगा
उम्र भर मुफलिसी मेँ जो रोता ही रहा ।
फटेहाल वो गरीब ए हिन्दोस्तान है जनाब ॥
चन्द बोतलोँ की खातिर बिकता है वही ।
इस देश का मतदाता है ये मतदान है जनाब ॥
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