- 179 Posts
- 948 Comments
वह ज़िस्म का बाजार
जो कल तक सीमित था
बस स्टैंड और रेलवे प्लेटफार्म
पर रखी महज़ चन्द
पीली पन्नी वाली किताबों तक
आज वही जिस्म का बाजार
घरों की चार दीवारी के भीतर
सेंध लगा चूका है
शयन कक्ष के डेस्क टॉप
पिता के टेबलेट
और बच्चों के मोबाइल तक
चन्द बटन दबाते ही
खुल पड़ता है वह नारी की
नग्न देह का बाजार
कल तक जो देह की नुमाइश
समझी जाती थी
नारी की कोई मजबूरी
आज वो बन चुकी है
तिज़ारत का एक हिस्सा
वो द्विअर्थी और चार अक्षरों वाले
शब्द जिन्हे घर में बोलने पर
बड़ों से झिड़की और सजा
का प्रावधान था
आज वही शब्द गूँज रहे हैं
घर घर में आयोजनों में
बजने वाले गानों में
और उसकी धुन पर नाच रहे
सब बड़े बूढ़े और बच्चे
शायद यही तरक्की है
यही मिसाल है
आधुनिक कहलाने की
आखिर कहाँ तक ले जाएगी
ये आधुनिकता इंसान को
वस्त्रों से झांकते जिस्म
दिखाने की होड़
सिनेमा ,विज्ञापन ,टी वी
बस जिस्म को दिखाने की
होड़ सी लगी है
Read Comments