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ढोंगी साधू ,मीडिया और पुरातत्व विभाग
सर्वप्रथम तो मैं यह कहना चाहूँगा की उस ढोंगी बाबा को साधू कहना ही गलत है साधू उसे कहा जाता है जो की सारी सांसारिक भोग विलास की वस्तु त्यागकर निर्वाण प्राप्ति हेतु साधना करता है जिस साधू को सपने में खजाना दिखने लगे वह पूर्ण रूप से अभी संसारिकता त्याग नहीं कर पाया है एक जमाना था जब साधू को सपना आया करता था की किसी स्थान पर कोई शिवलिंग या पभु की मूर्ति दबी है परन्तु आज के ढोंगी साधुओं को प्रभु के बजाय खजाना दिखाई देता है
सपने तो सभी देखते हैं मगर कोई सपनो पर यकीं नहीं करता है वरन सपनो को साकार करने हेतु कर्म करता है परन्तु टी आर पी का भूखा ये मीडिया इस कदर अँधा हो गया की दिन रात उस बाबा के सपनों का ही प्रचार करने लगा अगर धन का ही प्रचार करना है तो इससे बड़ा धन जो काले धन के रूप में साक्षात् रूप में स्विस बैंक में है उसका जिक्र करे और उसे वापस देश में लेन का प्रयास करे तभी देश के चौथे स्तम्भ कहलाने वाले मीडिया की सार्थकता सिद्ध होगी न की जनता के सपनो का प्रचार करने में
अब बारी आती है पुरातत्व विभाग की इनको देखकर तो वही कहानी चरितार्थ होती है जिसमे एक आदमी कंधे में बकरी लेकर जा रहा था बार बार ये कहे जाने पर की गधे को कंधे पर कहाँ ले जा रहे हो वह भी सोचने को विवश हो गया की शायद मेरे कंधे पर गधा तो नहीं है और उसे कंधे से उतर देखने लगा इसी प्रकार मीडिया के बार बार प्रचार करने पर अपने विज्ञानं को भुलाकर चल दिए सपनो को सच करने के लिए खुदाई करने
क्या देश का बुद्धिजीवी वर्ग ,मीडिया ,विज्ञानं इस कदर लचर हो चूका है की अब उसे सपनो की दुनिया में जाकर सपने ,अन्धविश्वास , भुत प्रेत आदि पर विश्वास करने पर मजबूर होना पड़ रहा है मीडिया को भी सपनो की दुनिया से निकलकर देश के गंभीर मुद्दों पर ध्यान देना होगा तथा सस्ती पब्लिसिटी पाने वाले इन बाबाओं को ज्यादा तवज्जो देना छोड़ना होगा और जनता को भी यह ध्यान रखना होगा की ऐसे बाबाओं पर ज्यादा समय नष्ट न करे नहीं तो जनता की अंध भक्ति की वजह से ऐसे बाबा समाज में पैदा होते रहेंगे
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