CHINTAN JAROORI HAI
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न जाने उम्र का ये कौन सा पडाव है
तन शिथिल पड रहा मगर मन मेँ उत्साह है
तन के तानपुरे के तार खुद मेँ उलझ रहे
मन की वीणा के राग नया जोश भर रहे
खाक ए तन से ढका अंगारोँ का अजब अलाव है
तन शिथिल पड रहा मगर मन मेँ उत्साह है
कर्मों का मेरे ए खुदा ये क्या सिला दिया तूने
माटी के तन मेँ अब ये क्या मिला दिया तूने
पतवार मेँ उमंग नौका मेँ ठहराव है
तन शिथिल पड रहा मगर मन मेँ उत्साह है
घायल ये पंछी फिर भी आसमान चढेगा
हौसलोँ से महज अब उडान भरेगा
सूखे दरख्त मेँ अब भी बची थोडी छाँव है
तन शिथिल पड रहा मगर मन मेँ उत्साह है
तन का ये प्रस्तर यूँ ही व्यवधान करेगा
मन का ये निर्झर अनवरत् बहता रहेगा
दीपक तू जलते रहना ये जीवन का उतार चढाव है
तन शिथिल पड रहा मगर मन मेँ उत्साह है
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