CHINTAN JAROORI HAI
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तीस वर्ष पहले
यही सांझ थी
यही दरख्त था
यही गंगा का किनारा था
अपने पिता की उँगली थामे
मैँ एकमात्र सहारा था
मेरी दादी की अपने शरीर से रिहाई थी
ये उनकी अन्तिम विदाई थी
आज भी वही सांझ है
वही दरख्त है
वही गंगा का किनारा है
मेरी उँगली थामे
मेरा पुत्र एकमात्र सहारा है
मेरे पिता की अपने शरीर से रिहाई है
ये उनकी अन्तिम विदाई है
तीस वर्ष का यह फर्क भी
अजब रंग लाता है
विदा करने वाला विदा होता है
उँगली थामने वाला विदा करता है
विदा करने वाले की उँगली थामने
एक नया सृजन आता है
दीपक पाणडे J N V नैनीताल
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