CHINTAN JAROORI HAI
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कविता के इस नव प्रभात मेँ ,
तुम ही मेरा वन्दन हो ।
माँ सरस्वति को करुँ समर्पित ,
तुम ही तो वह चन्दन हो।
जीवन की इस नव बगिया मेँ ,
तुम्हीँ भ्रमर का गुंजन हो।
तुम ही मेरी प्रथम प्रेरणा
तुम ही अन्तिम स्पन्दन हो ।
इस उपवन की नवीन लता का
,
तुम ही तो अवलम्बन हो।
मेरे उर की नव त्रिष्णा का
,
तुम ही वह आलिँगन हो ।
इस जीवन के प्रथम प्रणय का ,
तुम ही तो वह चुम्बन हो।
पीडा मेँ आनन्दित करता,
अग्नितप्त वह कुन्दन हो।
तुममेँ लिखता तुमको लिखता ,
तुम ही मेरा अभिनन्दन हो ।
दीपक पाँडे नैनीताल
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