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परदे में होता है सभी कुछ ,प्यार भी इक़रार भी
बाजार में इसको दिखाना ,अच्छा नहीं लगता
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जिस्म को ढकने की खातिर ,पहरावों को किया था इज़ाद
झाँकने लगे जिस्म वो वस्त्र पहनाना, अच्छा नहीं लगता
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मंदिरों के द्वार पर, देख भूखों के कतार
करोड़ों का वो भोग लगाना ,अच्छा नहीं लगता
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क्या विज्ञापन, क्या गाने, फिल्मे, परोसते अश्लीलता
साथ बच्चों को टी वी दिखाना, अच्छा नहीं लगता
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शहीद होते हैं जंग में तो, कटते भी हैं सर वहाँ
कटे सिरों को हाथों में नचाना, अच्छा नहीं लगता
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मान दिया ओहदा दिया, इस मुल्क ने तुमको मगर
दुश्मन को घर में यूं बुलाना, अच्छा नहीं लगता
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चौखट पे जिसके सर्द से, मर गया वो रात में
उस दर पे चादर का चढ़ाना, अच्छा नहीं लगता
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दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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