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धरती की कोख पर चंद नए पौधे लगाता है

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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न तो दान ही करता है ,न ही शौक ए बन्दगी
धरती की कोख पर चंद नए पौधे लगाता है
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संबंधों का उसने कुछ बढ़ाया है दायरा
अजनबी दुनिया से नए रिश्ते बनाता है
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न देखता है कोई स्वप्न न ही पूर्णता की ख्वाहिश
आने वाली नस्लों की खातिर नए सपने सजाता है
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जिनको गुल की है चाहत ,आरज़ू गुलाब की
उनको काँटों की राहों पे चलना सिखाता है
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यही निवेश है उसका यही व्यापार है उसका
भावनाओं की चन्द नयी कलमें बनाता है
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न तो भूत का ही भ्रम ,न भविष्य की चिंता
वर्तमान में गाता है शब्दों को सजाता है

दीपक पाण्डेय
नैनीताल

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