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पराया खून (लघु कथा )(contest)

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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वृद्ध आश्रम का एक दृश्य लम्बी कतार , हर साल की तरह रामनरेश जी अपनी बेटी के साथ कम्बल का वितरण करने आये हुए थे लकिन यह क्या अबकी बार इस भीड़ में उन्हें एक जाना पहचाना चेहरा नजर आ रहा था अरे यह उनके आगरा वाले घर के पुराने पडोसी विनीत जी ही तो थे शादी के बारह साल तक कोई संतान न होने पर एक बेटा गोद लिया था चूंकि पत्नी को बेटे कि ही चाह थी धीरे धीरे जिंदगी कटती गयी इनकी तो अच्छी खासी जमीन जायदाद थी लड़का भी इंजिनीअर बनकर विदेश चला गया था शादी भी बड़ी धूम धाम से की थी बेटे की फिर अचानक ये क्या हुआ जिज्ञासावश कम्बल बाँटने के पश्चात् बेटी के साथ विनीत जी से मिलने पहुंचे
विनीत जी ने अपनी आपबीती सुनाई तुम तो सब जानते ही हो रामनरेश जी बेटा बार बार देश छोड़कर मुझे विदेश ले जाने कि जिद कर रहा था मेरे न मानने पर भी उसने अपनी माँ गायत्री को मना ही लिया एक बार आकर सभी जमीन जायदाद का सौदा कर विदेश चला गया और फिर कभी न आया अब तो अपनी जमीन और मकान भी न था गायत्री इसी गम में चल बसी और में इस वृद्धाश्रम की चौखट तक आ आ गया इसमें किसी का दोष नहीं है रामनरेश जी आखिर गोद लिया बच्चा था और था तो पराया ही खून
मैंने उसकी बात को काटते हुए कहा ऐसा न कहो मेरी भी बेटी मेरी अपनी नहीं है पर आज मेरे लिए सब कुछ है में इसी के साथ रहता हूँ विदेश जाने का मौका मिला था इसको, पर बोली बाबा इसी मुल्क में रहकर आपकी सेवा करुँगी आज तुम्हे ये राज बताता हूँ कोई निष्ठुर माँ बाप इस छः दिन कि रोटी बिलखती बच्ची को दीं दयाल पार्क छोड़ गए थे करुणावश मैं इसे अपने घर ले आया था वर्ना वहाँ तो इस नाजुक शारीर को जानवर कि खा जाते यह पराया खून होने के बावजूद मेरे लिए अपनों से कहीं ज्यादा दीनदयाल पार्क का नाम सुनते ही उसका चेहरा पीला सा पड़ गया था वह न जाने कौन सी स्म्रितियों में खो गया था उससे विदा लेकर मै वापस चला आया था
आज का दिन विनीत के लिए बहुत भारी था उसने खाना भी नहीं खाया था रामनरेश की जबान से दीन दयाल पार्क का नाम सुनाने के बाद से वह एकदम शांत हो चला था इतना दुखी वह उस दिन भी न हुआ था जब उसका बेटा सब कुछ बेचकर विदेश चला गया था उसे अपने अतीत के वो दिन याद आ रहे थे जब वह गायत्री को ब्याह कर घर लाया था कितने खुश थे वो दोनों एक साल पश्चात गायत्री ने फूल जैसी बेटी को जन्म दिया था परन्तु रूढ़िवादी परिवार मै पले बड़े विनीत और गायत्री उस नन्ही मासूम जान को दीन दयाल पार्क छोड़ आये थे आज उसी बच्ची को सामने देख उससे नजरें भी नहीं मिला पा रहा था आखिर वही तो थी उसका अपना खून

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