CHINTAN JAROORI HAI
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सुख का तनिक भी मुझे
अहसास न होता
पीड़ा गर घर में मेरे
मेहमान न होती
वो परिंदा कैसे पेड़ पर
बना पता घरौंदा
आसमानो की अगर
उड़ान न होती
आस्था और श्रद्धा ही
समाज की बुनियाद हैं
हर कोई मूरत यूँही
भगवान न होती
होता न सवेरा
ये मधुर
शाम न होती
ये रात अगर अंधेरों
पे मेहरबान न होती
न आती सर्द हवा
और न होता ये पतझर
बागान को बसंत की
पहचान न होती
बागबान के ही हाथों
मसले जाने से
बच ही जाती वो
जोश में गर इस कदर
नादान न होती
आज भी देवी कि तरह
पूजी जाती हर नारी
समझी जाती महज
जिस्म की दुकान न होती
काटकर फनकार की उँगलियाँ
कर दी यहीं दफ़न
वर्ना ये ईमारत भी यूं
आलीशान न होती
सो जाता वो भी
बदहवास
चादर को तानकर
बेटी जो उसके घर में भी
जवान न होती
धर्म की ही आड़ में
जो न होता कत्लेआम
गाँव की ये गलियां
यूं वीरान न होती
दीपक पाण्डेय
नैनीताल
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