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आज सुबह अखबार में चेन्नई बम कांड के विषय में पद रहा था जिसमे एकमात्र मरने वाली लड़की का नाम स्वाती था वो स्वाती जो टी सी एस में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थी और दो महीने बाद ही उसका विवाह होने वाला था आखिर इस भोली भली स्वाति का क्या कसूर था जो उसे अपनी जान से हाथ धोना पड़ा उस मासूम के घरवालों ने उसे कितने प्यार से पालकर बड़ा किया होगा एक लड़के की ही भांति पालकर उच्च शिक्षा दिलवाई आज जब वो अपने पैरों पर खड़े होकर अपनी नयी जिंदगी की शुरुआत करने वाली थी एक विवाह बंधन में बंधने वाली थी तो वह भी इन आतंकियों के इस कारनामे की भेंट चढ़ गयी आखिर क्या कसूर था इस मासूम स्वाति का क्या कोई मुझे कोई आतंकी संगठन इसका जवाब देगा
अब मैं उस निर्दयी आतंकी के विषय में चर्चा करना चाहूंगा क्या वह ये भी जानता है की उसने किस मासूम का क़त्ल किया है या उसे इस मासूम को मारकर क्या मिला क्या उसकी उस मासूम से उसकी कोई दुश्मनी थी ये क़त्ल करने का उसका क्या उद्देश्य था मैं तो इन कातिलों के लिए एक जुमला पेश करना चाहूंगा ” खिसियानी बिल्ली खम्बा नोंचे ” अर्थात नक्सली हों या आतंकी ये जिस विचारधारा के अनुरूप जिन हुक्मरानों का या उनकी नीतियों का विरोध करते हैं वो तो सब z सिक्योरिटी में मेहफ़ूज़ हैं आखिर ये उनका तो कुछ बिगड़ पते अतः स्वाति जैसे मासूम ही इनका शिकार बनते हैं ये निर्दयी आतंकी ये जानते हैं इस देश के लचीले कानून के तहत इन्हे कोई विशेष सजा तो होगी नहीं या कठोरतम दंड फँसी भी हो गयी इस राजनैतिक इच्छा शक्ति के आभाव में और लालफीताशाही में वो साफ़ बच निकलेंगे
अब मैं बात करूंगा उन दयालु बुद्धीजीवियों की जो इस देश के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक हैं आज स्वाति जैसी मासूम के साथ इन बुद्धीजीवियों को कोई सहानुभूति नहीं है कोई मीडिया मासूम स्वाति के घर सहानुभूति जताने या अफ़सोस प्रकट नहीं जायेगा परन्तु ये सबकी सहानुभूति उस आतंकी के प्रति जागेगी जब इस आतंकी को सजा दी जा रही होगी कोई इनमे से कुछ के १८ साल से काम के मासूमियत के सर्टिफ़िकेट प्रस्तुत करेगा और उसे पाक साफ़ बचा ले जायेगा या अगर आतंकी की उम्र ३५ की रही होगी तो कुछ वर्ष बाद उम्र के साथ कोई बीमारी हो जाने पर दया की याचना करेगा या कोई राजनेता वोट बैंक की खातिर उसकी सजा माफी की दरख्वास्त करेगा या कोई कई साल जेल में बीत जाने पर उसके सजा की अवधी बीत जाने पर उसकी मानसिक स्थिति का हवाला देते हुए उसे जीने के अधिकार के तहत छोड़ने की गुजारिश करेगा या एक संगठन को तो मैं भूल ही गया मानवाधिकार संगठन , अंततः फांसी का फैसला आने पर भी यह संगठन उसकी रिहाई की गुहार कर सकता है
यह बात मंथन करने योग्य है की सब बुद्धीजीवियों या मीडिया को मात्र आतंकियों के अधिकारों की ही चिंता क्यों रहती है क्या इस मासूम स्वाति के कोई मानवाधिकार नहीं क्या इस स्वाति को जीने का कोई अधिकार नहीं क्या इस मासूम स्वाति के बड़े माँ बाप की बीमारी या मानसिक स्थिति का किसी को ख्याल नहीं क्या व्यक्की बुद्धिजीवी तभी कहलाता है जब वो किसी अपराधी या आतंकी या नक्सली या देशद्रोही पर ही सहानुभूति दिखाए इससे अच्छे तो वो अनपढ़ गंवार भले जो काम से काम जो कम से कम एक देशभक्त और एक देशद्रोही या एक मासूम या वहशी में फर्क तो जानते हैं आज अखबार में स्वाती के बारे में पद कर ये विचार मन में उठे मन द्रवित हो उठा उस मासूम के माता पिता के विषय में सोचकर अपने विचार और सहानुभूति प्रस्तुत करें या बचा कर रखें उस वहशी के सजा होने पर उसकी खातिर अपने को बुद्धिजीवी कहलाने के लिए
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