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सर्वप्रथम तो यह प्रश्न विचारणीय है कि आखिर सचिन को भारत रत्न क्यों क्या उसने समाज सेवा में कोई उत्कृष्ठ योगदान दिया है या फिर कला के क्षेत्र में कुछ उनका योगदान है या फिर विज्ञानं के क्षेत्र में उन्होंने कुछ नया कर दिखाया है या राजनीती के मैदान में उन्होंने अनवरत देश कि सेवा में अपना समय बिताया है शायद इनमे से कुछ भी नहीं तो किस बात के लिए ये देश का सर्वोच्च सम्मान उन्हें दिया गया है
उन्हें शायद ये सम्मान क्रिकेट खेलने कि वजह से मिला है वह खेल जिसे पूरे विश्व में महज पंद्रह या बीस देश खेलते होंगे क्या खेलो में जहाँ देश ओलिंपिक में कुछ ही पदक पता है उस क्षेत्र में उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है वह खेल JO कि मात्र कुछ ही देशो में खेला जाता हो उसमे भी पैसे कि खातिर खेलना तो एक नौकरी से ज्यादा कुछ नहीं यदि यह सम्मान खेल के लिए ही दिया गया है तो शायद पहला हक़ मेजर ध्यानचंद को जाता है जिन्होंने देश को कई बार स्वर्ण पदक दिलाकर देश का नाम विश्व के इतिहास में रोशन किया या फिर अभिनव बिंद्रा क्यों नहीं जिसने अपने खर्चे से ट्रैनिंग पाकर देश को पहली बार
एकल रूप में स्वर्ण पदक दिलाकर भारत का नाम रोशन किया या फिर विश्व में प्रथम रहकर विश्व में भारत का विजई पताका लहराने वाले पुल्लेला गोपीचंद ,साइना नेहवाल ,विश्वनाथन आनंद ,मिल्खा सिंह ,सान्या मिर्ज़ा ,मेरीकॉम ,गीत सेठी ,क्यों नहीं
क्या मात्र इस बात पर कि क्रिकेट का खेल अन्य खेलों में ज्यादा लोकप्रिय है या सचिन इस दौरान देश में ज्यादा लोकप्रिय रहे मीडिया के इस ज़माने में लोकप्रियता का कोई मापदंड नहीं है मीडिया एक सपने देखने वाले बाबा तक को लोकप्रिय बनाकर सर्कार को खुदाई करने पर मजबूर कर सकता है अगर भारत रत्न जैसे सर्वोच्च सम्मान महज लोकप्रियता के आधार पर दिए जाने लगेंगे तो एक समय इसी मीडिया ने अन्ना हजारे को लोकप्रिय बना दिया था या आजकल सबसे लोकप्रिय मोदी चल रहे हैं और हर रोज मीडिया कि सुर्ख़ियों में हैं
अब सवाल यह उठता है कि भारत रत्न के मापदंड फिर से तय किये जांय या नहीं ? बनाने को देश का संविधान भी बुद्धिजीवियों द्वारा बनाया गया था परन्तु तब किसी ने ये सोचा था कि इसी संविधान पर चलकर अपराधी भी देश के नेता बनकर देश को चलाएंगे जब देश का संविधान बना था तो कहा गया था कि यह सभ्य लोगों द्वारा सभ्य लोगो के लिए बनाया गया है परन्तु आज जब जाती ,धर्म कि राजनीती में फंसे लोग सभ्य ही नहीं रहे तो संविधान के मानकों का क्या औचित्य
इसी प्रकार भारत रत्न के मानक कितने भी बदल लिए जांय यदि उसका पालन करने वालों कि नीयत में खोट होगा तो इसका कोई फायदा नहीं होगा भारत रत्न के नाम तय करने वालों को स्वार्थ कि राजनीती से ऊपर इतना होगा वर्ना भारत रत्न अपनी महत्ता ही खो देगा भारत रत्न कि महत्ता का बेमिसाल उदहारण तो तब होता जब गैर कांग्रेस पार्टी के राज में इंदिरा गांधी, राजीव गांधी , भारत रत्न हेतु मनोनीत होते तथा कांग्रेस के राज में अटल बिहारी बाजपेयी मनोनीत होते तो शायद इस
इनाम कि गरिमा और बड़ जाती
यदि इसी प्रकार भारत रत्न बांटे जाते रहे और इस पर मीडिया कि सस्ती लोकप्रियता ,स्वार्थ कि राजनीती ,हावी होती रही तो वह दिन दूर नहीं कि इस सम्मान का ही कोई सम्मान नहीं रह जायेगा मानक तय करने वालो पर कुछ निर्भर नहीं करता वरन मानक का पालन करने वालो में की नीयत पर निर्भर करता है अहीर में बात वहीँ पर आ जाती है कि समाज को बदलना होगा और समाज कोई एक नेता नहीं बदलेगा ये समाज हमी को बदलना होगा हमें स्वयं को बदलना होगा ताकि वो सभ्य लोगो द्वारा बनाया गया संविधान का पालन करने वाले भी हमारे ही समाज के सभ्य लोग हो देश और समाज की खातिर सब कुछ समर्पित करने वालों को किसी भारत रत्न की दरक़ार नहीं होती वो खुद ही जनता के दिलो में बसा करते हैं
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