CHINTAN JAROORI HAI
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घरौंदा छोड़कर परवाज़ को जाते हैं जब पंछी
नभ में अनंत विचरण का तब आभास होता है
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टूट कर जब शाख से मिल जाता है माटी में
दरख़्त बन दाना वही,चूमता आकाश होता है
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भूगर्भ की हलचल की उस पीड़ा को झेलकर
सागर था कभी जो अब वही कैलास होता है
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जो जाती है डूब तेल में दीपक के प्रेम में
जलती है जब खुद दूर तक प्रकाश होता है
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जिस शाखा पर बैठा है उसी डाली को काटता
ठुकराने पर वही काव्य का कालिदास होता है
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खुद को मिटाकर अहं को भी शून्य में रखकर
ज़हन में खुदा का तब ही तो एहसास होता है
दीपक पाण्डेय
जवाहर नवोदय विद्यालय
नैनीताल
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