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स्वाभिमान

CHINTAN JAROORI HAI
CHINTAN JAROORI HAI
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हवाई चप्पल के दो डिब्बों की ओर देखकर मास्टर जी ख्यालों में खो गए थे,  कल ही प्रधानाचार्य जी ने कहा था कि बड़े अफसर मुआयने पर आये हैं , सरकारी गेस्ट हाउस में ठहरे हैं वो अपनी हवाई चप्पल लाना भूल गए हैं। अतः कल विद्यालय आते वक़्त एक जोड़ी नयी हवाई चप्पल लेते आना।  मास्टर जी ने बाज़ार से दो जोड़ी चप्पल ली ,एक अफसर के लिए तथा एक अपने पिता के लिए। तभी अचानक दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजे पर एक हष्ट पुष्ट पुरुष खड़ा है कपड़ों के नाम पर बस केवल शरीर में गमछा है पाँव में चप्पल नहीं होने से एडियाँ फटी हैं पूछने पर बोला उसका बेटा विद्यालय में पड़ता है अतः उसकी अध्ययन के बारे में पूछने आया था। मास्टर जी ने बताया कि उसका पुत्र विद्यालय का होनहार छात्र है चूँकि विद्यालय का समय हो गया था अतः मास्टर जी एक जोड़ी चप्पल का डब्बा उठाया और जल्दी में चले गए तथा अपनी पत्नी से कह गए कि वो दूसरा चप्पल का डब्बा इस भद्र पुरुष को दे देना।  मुआयना बेहतर ढंग से निपट गया था भूलवश वो अफसर चप्पल अपने साथ ही लेकर चले गए थे। वापसी में घर के बाहर वो चप्पल का डब्बा और एक पर्ची  देखकर मास्टरजी सकपकाए उस पर्ची पर लिखा था “चप्पल के लिए शुक्रिया , माफ़ कीजियेगा मैं गरीब किसान  जरूर हूँ मगर अभी इतना स्वाभिमान बाकी है कि भूलवश भी मैं उस गुरु से कुछ नहीं ले सकता जो मेरे पुत्र को ज्ञान दे रहा है, बस यही गुज़ारिश करने आया था कि मेरे पुत्र की शिक्षा का ख्याल रखना”।

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